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________________ ६० अलबेली आम्रपाली भय से वह मूच्छित हुई है वह मौत किसी अनजान नययुवक के बाण से स्वयं मर चुकी है। वन-प्रदेश की रमणीयता को देखने के लिए निकले हुए बिंबिसार को भी यह कल्पना नहीं थी कि इस प्रकार उसके हाथों एक भयंकर वराह का शिकार होगा। ___ आम्रपाली अचेत अवस्था में पड़ी थी। बिबिसार भी अश्व से गिर पड़े शिकारी को ढूंढ़ता हुआ इस ओर आ रहा था। वह शिकारी आम्रपाली के निकट आए, उससे पूर्व ही अश्व ही अपनी स्वामिनी जहां गिरी थी, उस ओर डरते-डरते आ रहा था। कुछ ही समय पश्चात् बिंबिसार तीव्र गति से चलता हुआ वहां आ पहुंचा और उसकी दृष्टि पुरुषवेशधारिणी मूच्छित आम्रपाली पर पड़ी। बिंबिसार ने सात-आठ कदम दूर पड़े वराह को देखा। उसे यह निश्चित हो गया कि वराह मर गया है। वह मूच्छित आम्रपाली के पास गया और उसे देखते ही चौंका । उसने सोचा, क्या ऐसा सुकुमार राजकुमार शिकार खेलने आया था ? उसने झुककर आम्रपाली का हाथ पकड़ा। ओह ! क्या गुलाब की कली जैसी सुकुमारता एक नवजवान पुरुष के हाथ में हो सकती है ? कुछ दूर खड़ा अश्व हिनहिनाने लगा। बिंबिसार ने सोचा, इस युवक शिकारी को अपने खेमे में ले जाकर इसकी मूर्छा को दूर करने का भरसक प्रयत्न करना चाहिए। यह भय से मूच्छित हुआ है । यह सोचकर उसने दोनों हाथों से आम्रपाली को उठाया। ओह ! इतना कोमल और फूल जैसा शरीर । उस समय आम्रपाली के सिर की पगड़ी नीचे गिर पड़ी और उसके जूड़े की सघन केशराशि बिखर गयी। बिबिसार चौंका... क्या यह कोई राजकन्या है ? इसने पुरुषवेश क्यों धारण किया है ? इसका साथी कहां है ? वह कहां पलायन कर गया? क्या वह इस सुन्दरी का प्रियतम है ? ऐसा कायर और डरपोक प्रियतम ! __किन्तु विशेष प्रश्नों में मैं क्यों उलझू ? मेरा तो एकमात्र कर्तव्य है कि मैं इसका संरक्षण करूं । यह सोचकर बिबिसार ने श्वेत अश्व पर आम्रपाली के मूच्छित शरीर को उचित ढंग से रखकर स्वयं अश्व की लगाम थामे अपने निवास की ओर चल पड़ा। मनुष्य का यह सहज स्वभाव है कि वह अपने संरक्षण की बात पहले सोचता है, उसको ही प्रधानता देता है । दूसरों के संरक्षण की बात द्वयं होती है। दूसरों की खातिर अपने प्राणों को जोखिम में डालने वाले विरले ही होते हैं । शीलभद्र मौत के पंजे से अपने आपको बचाने के लिए भाग छूटा । भागते-भागते उसने करुण चीत्कार सुना था और उसने यह निश्चय कर लिया था कि वैशाली का
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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