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________________ अलबेली आम्रपाली ६१ नारी - रत्न वराह के तीखे दांतों का भोग बन गया है । स्वयं के अन्तर में जो स्वप्न अठखेलियां कर रहा था, वह सदा-सदा के लिए मिट गया है । शीलभद्र भागते-भागते उसी जलाशय के पास आया, जहां स्वप्निल आशाओं को मूर्त बनाने के लिए एक कुटीर का निर्माण कराया था। वह कुटीर आम्रपाली के उभरते यौवन के साथ रंगरेलियां मनाने के लिए बना था । पर उसे देखते ही उसने निःश्वास छोड़ा और अपने साथियों से मिलने एक निर्धारित दिशा में चल पड़ा। इधर बिंबिसार का विश्वस्त मित्र धनंजय और भृत्य युवराज की टोह में इधर-उधर घूम रहे थे । जब बिंबिसार उस श्वेत अश्व को लेकर उस पहाड़ी पर निर्मित भूतिया आवास या प्रस्तरगृह के पास पहुंचा तब सूर्य की अन्तिम किरणें लुप्त हो चुकी थीं । बिबिसार ने प्रस्तरगृह के एक शिलाखण्ड पर मूच्छित आम्रपाली को पूर्ण सावधानीपूर्वक सुलाया और थके-मांदे अश्व को बाड़े में चरने के लिए छोड़ दिया । फिर उसने दूसरे खण्ड में एक दीपक ढूंढा, चकमक प्रस्तर से अग्नि प्रकट कर दीपक जलाया और उसे आम्रपाली के खण्ड में रख दिया । वह एक जलपात्र लेकर मूच्छित आम्रपाली के पास गया और धीरे-धीरे उसके मुंह पर शीतल जल के छींटे देने लगा । इधर शीलभद्र संध्या होते-होते अपने साथियों से जा मिला । उसको अकेला देख एक साथी ने पूछा - "महाराज ! देवी ?" "बड़ी दुर्घटना हो गई।" शीलभद्र ने दर्द भरे स्वर में कहा । "कैसी दुर्घटना ?" "हाय ! देवी आम्रपाली एक भयंकर वराह का भोग बन चुकी है ।" " देवी का शव?" "अब उसके मिलने की कोई सम्भावना नहीं है। मैंने देवी की अन्तिम चीख सुनी थी ।" कहकर शीलभद्र ने संक्षेप में सारा वृत्तान्त कह सुनाया । वहां से शीलभद्र मेले के सप्तरंगी पड़ाव में गया जहां आम्रपाली का अस्थायी निवास था । माध्विका ने पूछा – “देवी ·?” "भयंकर दुर्घटना ।" शीलभद्र ने कहा । "दुर्घटना !" माध्विका के नेत्र विस्फारित रह गये । "हां, एक वराह ने देवी का भोग ले लिया." शीलभद्र ने कहा । "किन्तु आप तो साथ थे।" माध्विका ने कहा ।
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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