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________________ अलबेली आम्रपाली ८६ मनुष्य हो या पशु, वह मौत से बचने के लिए अपनी सारी शक्ति लगा देता है । आम्रपाली ने देखा -- सामने एक छोटी-सी पहाड़ी है। उसके पीछे कोई-नकोई मार्ग अवश्य होना चाहिए। वहां पहुंच जाने पर इस गहन वन- प्रदेश के भय से मुक्त हुआ जा सकता है । क्योंकि यह काम्बोजी अश्व मार्ग मिलने पर पक्षी की भांति जमीन पर उड़ सकता है । उसी समय एक तीखी चीख ने सारे वन- प्रदेश में खलबली मचा दी । आम्रपाली को यह अनुभव होने लगा कि अब मौत मुंह बाए सामने खड़ी है । किन्तु टेकरी के पीछे वाली पहाड़ी से वन- प्रदेश को देखने की अभिलाषा से चला आ रहा बिबिसार वराह की तीव्र आवाज को सुनकर सावधान हो गया । उसने देखा, एक श्वेत अश्व पर कोई भयार्त्त नवयुवक बैठा है और वह अश्व इसी ओर चला आ रहा है । अश्व टेकरी पर चढ़े उससे पूर्व ही आम्रपाली ने पीछे देखा, वराह उससे केवल दस-बीस कदम ही दूर है और उसके दंतशूल कुछ ही क्षणों में उसको चीर डालेंगे, ऐसा प्रतीत हुआ । आम्रपाली ने करुण चीत्कार किया । यह स्त्री-स्वभाव की सुलभ चीत्कार थी । वराह ने भी अपने शिकार पर झपटने के लिए तीखा गर्जारव किया । श्वेत अश्व चौंका आम्रपाली अपने आपको सम्भाल नहीं सकी वह अश्व से नीचे लुढ़क गयी। वह मूच्छित हो गयी । किन्तु उसी समय सर्-सर् करता हुआ एक बाण वराह के मस्तिष्क के आर-पार निकल गया । वराह का रोष दुगुना हो गया । उसने पांच-सात कदम पर खड़े अश्व की ओर देखा और एक बाण तीव्र गति से आया और वही वराह की मृत्यु का कारण बना। वराह ने मृत्यु से पूर्व अन्तिम चीख निकाली और वहीं का वहीं उछलकर भूमिसात् हो गया । भयार्त्त अश्व खड़ा ही था । किन्तु शीलभद्र कहां गया ? बहुधा ऐसा होता है कि प्राणी भय से आक्रान्त होकर मूच्छित ही नहीं होता, मर भी जाता है। तरुण राजकुमार के वेश में शिकार के लिए निकली हुई आम्रपाली वराह के भयंकर रूप को देखकर तथा मौत का सात-आठ कदम पर साक्षात्कार कर अत्यधिक भयाक्रान्त हो अश्व से लुढ़ककर मूच्छित हो गयी थी । वह भूमि पर उसी अवस्था में पड़ी थी । उसे यह ज्ञात नहीं हुआ कि जिस मौत के
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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