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________________ अलबेली आम्रपाली ४७ बात को टालते रहें । दुर्दम को दो-तीन वर्षों के लिए रणशास्त्र की शिक्षा प्राप्त करने के लिए कहीं भेजना होगा। इससे रानी और विश्वस्त होगी ।" "यही उचित है ।" इतने में महाप्रतिहार ने आकर कहा - " महादेवी आयी हैं ।" " आने दो।" उसी क्षण रानी ने खण्ड में प्रवेश किया। उस समय अग्निपुत्र मगधेश्वर से कह रहे थे - "महाराज ! सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे । इस बुद्धिमत्ता से सारा काम सफल हो गया। अब आप दुर्दम को रण-शिक्षा लेने कहीं भेजें । भावी मगधपति की भुजाओं में बल ही अपेक्षित नहीं है, किन्तु ज्ञान और अनुभव से भी उन्हें समृद्ध होना है ।" आचार्य के ये शब्द सुनकर रानी का चेहरा प्रफुल्लित हुआ । वह बोली"आचार्य देव ! आपके हृदय में दुर्दम के प्रति जो ममता है, उसे जानकर मैं धन्य हो गई। मेरा पुत्र दुर्दम उत्तम गुणों से युक्त है। सैनिक शिक्षा इसके लिए अपेक्षित है, पर जब आप उसके स्वास्थ्य को देखेंगे तो आप अवश्य कहेंगे कि इसका शरीर सैनिक शिक्षा लेने योग्य नहीं है ।" "महादेवी, आपकी बात सही है । पर सैनिक शिक्षा बहुत जरूरी है । शरीर को व्यायाम मिलने पर वह मजबूत होगा और वह सबके लिए सुखदायी होगा ।" रानी ने यह बात स्वीकार की । प्रसेनजित ने आचार्य की ओर देखकर कहा--" आचार्य ! आपके उस प्रयोग का क्या हुआ ?" आचार्य समझ गये कि महाराज ने दुर्दम की बात को टालने के लिए यह प्रश्न किया है । वे बोले – “महाराज ! अभी तक चौदह वर्ष की रूपवती कन्या प्राप्त नहीं हो सकी है।" "यदि विषकन्या का निर्माण हो जाए तो मेरे लिए उसकी परम आवश्यकता है ।" " आपको ?” "हां, महापुरुष ! राक्षसराज शंबुक पर विषकन्या का प्रयोग ही सफल होगा, ऐसा मुझे प्रतीत हो रहा है ।" "हां, महाराज ! आप ठीक कह रहे हैं। पर मैं क्या करूं ? जब तक रूपसी कन्या नहीं मिलती विषकन्या के निर्माण की कोई प्रयोजनीयता नहीं होती ।" "यदि कोई दासी हो तो?” महारानी ने पूछा । "हां महादेवी ! वह अत्यन्त सुन्दर, आकर्षक, स्वस्थ और सुगठित होनी चाहिए । ऐसी कन्या वेश्याओं में मिल सकती है ।" आचार्य ने कहा ।
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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