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________________ अलबेली आम्रपाली ३५ "आपके सहवास से अमर बनने, धन्य बनने के लिए", भावावेश में पद्मकेतु बोल उठा। "एक रात में अमर नहीं हुआ जा सकता, राजकुमार ! पुजारी का काम है वह निष्काम पूजा करे, उपभोग की लालसा न रखे।" "तो फिर मेरी आशा ।" "मित्र ! ऐसी आशा की संपूर्ति वसंत बाजार में हो सकती है। वहां रूप, यौवन और मन सब बिकते हैं, लूटे जाते हैं ।" आम्रपाली उठी और पद्मकेतु की ओर देखकर बोली-“महाराजकुमार ! क्षमा करें।" वह अन्दर चली गयी। शिशिरा ने पद्मकेतु की ओर देखकर कहा "महाराजकुमार !" "हूं।" कहकर पद्मकेतु खड़ा हो गया । ७. वीणा की साधना एक सप्ताह बीत चुका था, किन्तु रानी त्रैलोक्यसुन्दरी बिंबिसार को देश से निर्वासित करने का कोई षड्यन्त्र नहीं कर सकी। पूरा बैसाख बीत गया, परन्तु कोई उपाय हस्तगत नहीं हुआ। राजपुत्र बिंबिसार राजगृह से चालीस कोस दूर जितारी सन्निवेश में वीणा की अन्तिम साधना पूरी करने गया था। वहां आचार्य कार्तिक रहते थे। वे उस समय के महान् वीणावादक माने जाते थे। उन्होंने आज तक अनेक शिष्यों को वीणावादन में निष्णात बना दिया था। किन्तु उनको अपनी विद्या की पूर्णता केवल दो शिष्यों में दीख रही थी। एक था वत्स देश का राजा उदयन और दूसरा था मगधेश्वर का प्रिय राजकुमार बिंबिसार ।। महाराज उदयन और बिंबिसार-दोनों तीनों ग्रामों से वीणा-वादन कर सकते थे। वे इसमें सिद्धहस्त थे। वत्सराज उदयन के वीणावादन से संतुष्ट होकर, मुग्ध होकर, गन्धर्वो ने उनको आकाशगामिनी विद्या दी थी। एक दिन बिबिसार अपने गुरु कार्तिक को साथ ले सन्निवेश से एक कोस की दूरी पर एक टेकरी पर गया। वहां एक सरस्वती का मन्दिर था। मन्दिर जीर्ण-शीर्ण हो चुका था । पर सरस्वती की प्रतिमा अत्यन्त सौम्य, मनोहर और अपूर्व थी। ___मन्दिर में पहुंचने के बाद कार्तिक ने कहा- 'वत्सवी ! भगवती देवी सरस्वती की कृपा से तू वीणावादन का गूढ़ रहस्य और देवीज्ञान का सर्वश्रेष्ठ जानकार हुआ है । देवी को नमस्कार कर तू अपनी वीणा पर अपनी सिद्धि को
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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