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________________ ३४ अलबेली आम्रपाली लगभग एक-आध घटिका के पश्चात् भोजन कार्य से निवृत्त होकर आम्रपाली वहां विश्रामगृह में आई। आम्रपाली को देखते ही पद्मकेतु खड़ा हो गया। आम्रपाली ने आते ही पूछा-"आयुष्मन् । कुशल हैं ?" "हां, देवि ! आप?" "मैं स्वस्थ हूं । आप किसी महत्त्व के कार्य के लिए..." "जी हां..." "क्या आज्ञा है", देवी ने कहा । "ओह देवि ! आपको यह कल्पना भी नहीं होगी कि मैं आपका पुजारी हूं।" आम्रपाली ने मुस्कराते हुए कहा- "वैशाली का पूरा युवावर्ग जनपदकल्याणी का पुजारी ही है।" पद्मकेतु विचार में पड़ गया कि वह क्या कहे। इतने में ही आम्रपाली बोल पड़ी-"क्या आप यही महत्त्व की बात करने आए थे?" "देवि ! आपके दर्शनों से मैं धन्य हुआ। जनपदकल्याणी के नियमों के अनुसार..." बीच में ही आम्रपाली बोली-"नृत्य-संगीत का कार्यक्रम तो एक सप्ताह के बाद प्रारम्भ होगा।" "मैं इसलिए नहीं आया हूं। नियमों के अनुसार मैं एक हजार स्वर्ण मुद्राएं लेकर आया हूं। मेरा प्रयोजन है कि आज की रात को मैं आपके साथ आनन्दमय बनाऊं।" - आम्रपाली व्यंग्यपूर्ण हास्य बिखेरती हुई बोली--"क्षमा करें। मेरी रात बहुत मूल्यवान है । मैं उसकी सुरक्षा करना चाहती हूं।" । "एक हजार स्वर्ण मुद्राएं निर्धारित हैं।" "मैं यह जानती हूं।" "तो क्या मेरे से पहले भी कोई भाग्यशाली...?" "मैं स्वयं ऐसे भाग्य से वंचित रहना चाहती हूं।" आम्रपाली ने कहा। "क्यों ?" "जनपदकल्याणी रूपाजीवा नहीं होती।" "आप सत्य कह रही हैं । जनपदकल्याणी तो वैशाली की माधुरी है ।" "माधुरी देखने के लिए होती है, लूटने के लिए नहीं।" "मैं लूटने के लिए तो नहीं आया।" "आप एक सहस्र मुद्राएं क्यों खर्च रहे हैं ?"
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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