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________________ ३३८ अलबेली आम्रपाली 1 उस समय देवी आम्रपाली अपने कक्ष में विश्राम करने सो रही थी । परन्तु शोभायात्रा में "बुद्धं शरणं गच्छामि' के घोष के साथ-साथ तथागत के जयघोष से चारों दिशाएं गूंज रही थीं । सप्तभूमि प्रासाद की सैकड़ों दास-दासियां तथागत के दर्शन करने भवन से निकल मार्ग पर आ गई थीं । छठी मंजिल पर विश्राम कर रही देवी आम्रपाली के कानों से कोलाहल के शब्द टकराए'''वह शय्या से उठे, उससे पूर्व ही माध्विका ने भीतर आकर कहा"देवि ! भगवान् तथागत आए हैं।" "सप्तभूमि प्रासाद में ?" "नहीं, अपने मार्ग से आगे बढ़ रहे हैं। आप दर्शन करने पधारें शोभायात्रा बहुत विशाल है ।" "दुधमुंहे बच्चों को मूंडने वाले तथागत के दर्शन करने की मेरी इच्छा नहीं है ।" " परन्तु देवि ! तथागत तो सर्वज्ञ हैं तीनों काल उनकी मुट्ठी में है ... आप एक बार देखें तो सही ।" माध्विका ने आग्रहपूर्वक कहा । "अभयजित साथ है ?" • "यह कैसे पता लगे ? संभव है साथ हों...।" " अच्छा ।" कहकर देवी शय्या से नीचे उतरी और उन्हीं वस्त्रों में छठी मंजिल के झरोखे में आ बैठी । लोग बोल रहे थे - भगवान् तथागत की जय ! लोग गाते थे - बुद्धं शरणं गच्छामि । संघं शरणं गच्छामि । धम्मं शरणं गच्छामि । तथागत के जयघोष से चारों दिशाएं मुखरित हो रही थीं । छठी मंजिल से राजमार्ग स्पष्ट दिखाई दे रहा था । भगवान् बुद्ध अपने शिष्य परिवार के साथ आगे बढ़ते हुए अनेक बार दीख पड़े । आम्रपाली सौम्यपूर्ति तथागत की ओर देख रही थी । परन्तु अभयजित कहां है ? वह बोल उठी -- "माधु ! कहीं अभयजित दिखाई दिया ?" "देवि ! संकड़ों भिक्षुओं में वह कैसे दिखाई दे ? परन्तु क्या आपने भगवान् के दर्शन कर लिये ?" "हां, तेरे तथागत को देखकर मेरे मन में एक बिजली चमक उठी है कल मैं तेरे तथागत से मिलने जाऊंगी ।"
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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