SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 346
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अलबेली आम्रपाली ३३७ "अब क्या किया जाए ?" धनंजय बोला-"कृपावतार ! यदि हम वैशाली की ओर जाएं तो...?" बीच में ही बिंबिसार बोला-"परन्तु हम जिस प्रयोजन से निकले हैं उसे तो पूरा करना ही होगा । वैशाली में हमें आम्रपाली से मिलने के लिए तो जाना ही नहीं है। केवल तथागत से मिलकर और अभयजित को प्राप्त कर लौट आना __ "महाराज ! जब आप वैशाली के वृक्ष देख लेंगे तब आम्रपाली के अतिथि अवश्य बनेंगे।" हंसते हुए धनंजय ने कहा। "क्या तुम मेरे मन को इतना दुर्बल मानते हो ? नहीं, धनंजय ! ऐसी मिलने की कोई भावना नहीं है। परन्तु ...' "क्या महाराज !" एक प्रयत्न करने का मन हो रहा है। किसी भी प्रयास से देवी को राजगृही ले जाना है।" बिबिसार के हृदय में देवी आम्रपाली से मिलने की एक आशा जागृत हुई। "देवी न आएं तो ?" "मेरा मन भी यही कह रहा है । यदि वे इनकार करेंगी तो हम वहां रुके बिना तत्काल लौट आएंगे।" ___ "यदि आपका निश्चय मजबूत हो तो कोई आपत्ति नहीं है। परन्तु यदि आप वहां रुक गए तो कलिंग की सीमा पर पहुंची हुई हमारी सेना में अत्यधिक अकुलाहट फैल जाएगी।" धनंजय ने कहा। __"आर्य वर्षाकार चतुर है । जयभद्र भी कुशल सेनानायक है। कोई बाधा नहीं आएगी और मैं भी सजग हूं''मैं अधिक कहीं नहीं ठहरूंगा।"बिंबिसार बोला। दूसरे दिन प्रातः दोनों ने वैशाली की ओर प्रस्थान किया। जिस दिन ये दोनों वैशाली की ओर प्रस्थित हुए उसी दिन उग्र विहार करते हुए तथागत वैशाली पहुंच गए और वैशाली की जनता ने उनका भारी स्वागत किया । हजारों लोगों ने अपने हृदय के आनंद को बिछाकर तथागत का वर्धापन किया । गणतंत्र के मुख्य व्यक्ति, गणक, लिच्छवी नेता तथा पुरवासियों ने भव्य शोभायात्रा निकाली। नगरी की दक्षिण दिशा में सेठ आर्यजित प्रभु का विशाल आम्रवन था। वहां तथागत चार दिन रुकने वाले थे। तथागत की वाणी को सुनने के लिए दूर-दूर से हजारों लोग आए थे। नगरी के राजमार्ग से गुजरती हुई शोभायात्रा मध्याह्न के समय सप्तभूमि प्रासाद के पास वाले राजमार्ग से निकली।
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy