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________________ अलबेली आम्रपाली ३३९ "परन्तु कल तो आप आर्य सुदास के यहां जाने वाली हैं।" "ओह ! तो आज ही रात्रि में 'तेरे तथागत को मैं समझाने वाली हूं. मेरी अन्तर वेदना' 'अनन्त वेदना''अपार वेदना। ६८. आशा के मोती रात्रि का प्रथम प्रहर अभी पूरा नहीं हुआ था। ____सप्तभूमि प्रासाद में सैकड़ों दीपमालिकाओं का प्रकाश फैल चुका था। प्रतिदिन की भांति आज भी सप्तभूमि प्रासाद का विशाल उद्यान दीपमालिकाओं से जगमगा रहा था। प्रासाद के प्रांगण में एक रत्नजटित रथ खड़ा था। देवी आम्रपाली से मिलने के लिए आने वाले सैकड़ों पुरुष एक निःश्वास डालकर लौटे जा रहे थे। क्योंकि बासंती, सबसे कहती-"देवी आज किसी से मुलाकात नहीं करेंगी 'देवी तथागत के दर्शन करने जाएंगी।" केवल रूप-दर्शन से मन को तृप्त करने वाले अनेक पुरुष इस उत्तर से निराश होकर विदा हो रहे थे। रत्नाभरण तथा कौशेय धारण कर देवी आम्रपाली माविका के साथ भवन से बाहर निकली । वह माध्विका के साथ रथ में बैठ गई। रथ के आगे-पीछे बीस-बीस अंगरक्षक नंगी तलवारें साथ ले, घोड़ों पर आरूढ़ हो रथ के साथ चले। माध्विका ने रथिक से कहा-"आम्रकानन की ओर।" "जी।" कहकर रथिक ने रथ को आगे बढ़ाया। भवन के प्रांगण में खड़ी कुछेक परिचारिकाओं ने जयनाद के साथ शंखध्वनि की और उद्यान में खड़े सिपाहियों ने जनपदकल्याणी का जयनाद किया। अश्वारोही संरक्षकों सहित देवी आम्रपाली का भव्य स्वर्ण-रथ राजमार्ग पर आ गया और मध्यम गति से आगे बढ़ने लगा। . ___निकट के ही किसी एक भवन से प्रथम प्रहर के पूर्ण होने की आवाज आई। माध्विका ने आम्रपाली के तेजस्वी नयनों की ओर देखकर कहा- "देवि ! मैं अभी भी नहीं जान सकी हूं कि आप भगवान् तथागत के समक्ष क्या कहेंगी?" आम्रपाली हंस पड़ी। उसने हंसते-हंसते कहा-"माधु.! तुझे मेरे ये अलंकार, सुख, प्रमोद आदि देखकर लगता होगा कि जनपदकल्याणी जैसा सुख इन्द्र की गणिका भी नहीं भोगती होगी। किंतु यह सब मन को ठगने का एक उपक्रम है। माधु ! केवल छल ही छल है । इस वैभव और उज्ज्वल काया के पीछे निरंतर अग्नि जैसी एक अन्तर वेदना मेरे चित्त को किस प्रकार जला रही है, यह तू क्या
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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