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________________ ३१८ अलबेली आम्रपाली "प्रिये ! मेरे प्रति जो तेरे मन में संशय है, उसे तू दूर करेगी तो तू समझ सकेगी कि स्मृति आग नहीं है, अमृत है।" "जाने भी दो 'मिलन के क्षणों में विवाद शोभा नहीं देता. 'अच्छा, आपका स्वास्थ्य कैसा है ?" "तेरी स्मृतियों ने मुझे बचाए रखा है । मुझे विशेष बनाया है।" "आप..।" "अरे, कहते-कहते रुक क्यों गयी?" ..... "मैंने सुना है कि आप वैशाली को नष्ट करना चाहते हैं ?" "हां, मगधेश्वर की इच्छा ऐसी है। परन्तु आम्रपाली के जयकीर्ति की ऐसी कोई इच्छा नहीं है। मैं यहां वैशाली की जानकारी लेने नहीं आया हूं। मैं तुझे साथ ले जाने आया हूं।" "कहां ?" जानते हुए भी आम्रपाली ने पूछा। "प्रिये ! तुझे याद नहीं ? तूने मुझे एक बार अपने माता-पिता की बात कही थी।" "स्वप्न किसी के भी न साकार हुए हैं और न होंगे।" कहकर आम्रपाली मैरेय का पात्र भरने लगी। बिंबिसार ने कहा-"प्रिये ! मैं इस विषय से मुक्त रहना चाहता हूं।" "कौशलनंदिनी नहीं पीती ?" "पीती है मेरी सभी रानियां पीती हैं। परन्तु तू पीए, यह मुझे अच्छा नहीं लगता।" "तो हम दोनों पीएं।" बिबिसार ने कहा-"तू जी भरकर पी ले । मैं इतना कठोर नहीं हैं कि तुझे पीते न देख सकूँ । अच्छा, कल आऊंगा।" "प्रियतम !" कहकर आम्रपाली ने मैरेय का पात्र फेंकते हुए कहा"मगधेश्वर का रोष मैं सहन नहीं कर सकती। मैं आज से आपके सामने मैरेयपान नहीं करूंगी।" "इसका अर्थ है 'मुझे सदा तेरे सामने ही रहना पड़ेगा?" "इसमें कोई दोष है ?" "नहीं। इसलिए मैं तुझे लेने आया हूं। स्त्रियां वेदना व्यक्त कर सकती हैं। पुरुष वेदना को पी जाता है। मैं सत्य कहता हूं, मैं तुझे कभी नहीं भूल सकता। तेरे बिना मुझे अपना जीवन रसहीन और अपूर्ण लगता है।" "आम्रपाली आपकी छाया बन सकती है। जनपदकल्याणी कहीं जा नहीं सकती।" "प्रिये ! लिच्छवियों ने तेरी भावना को पीस डाला है। उन्होंने तेरे पर
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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