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________________ अलबेली आम्रपाली ३१७ स्वभाव में छुपा हुआ है । आपने मुझे याद नहीं किया, नंदा को भूल गये.. और...?" बीच में ही बिंबिसार ने कहा-"प्रिये ! मैं किसी को भी भूला नहीं । यदि तुझे भूलता तो यहाँ क्यों आता? परन्तु यदि मैं सारी बात बताऊंगा तो तुझे आश्चर्य होगा। इन दो वर्षों में मैं केवल शस्त्रों से ही परिचित रहा "भवन में नवयौवन में झूलती पत्नियों से भी मिलने नहीं गया । कर्तव्य का मार्ग इतना कठोर होता है कि मनुष्य अपने सुख को भी भूल जाता है।" आम्रपाली कुछ कहे, उससे पूर्व ही बाहर से माध्यिका की आवाज आयी। आम्रपाली ने कहा-'अन्दर आ जा।" माध्विका ने अन्दर आकर भोजन के थाल की बात बतायी। दोनों खड़े हुए और माविका के साथ-साथ गए । भोजन से निवृत्त होकर दोनों पुनः शयनकक्ष में आकर बैठ गए। माध्विका मैरेय के पात्र, मुखवास का थाल आदि रखकर चली गयी। आम्रपाली ने मरेय के दो पात्र भरे और एक मगधेश्वर के सामने रखा। बिबिसार बोला-"तू तो जानती ही है कि मुझे कृत्रिम नशा प्रिय नहीं है। किन्तु मैं आज तेरा अपमान नहीं करूंगा।" कहकर उसने मेरेय का पात्र हाथ में ले लिया''दूसरा पात्र आम्रपाली ने लिया तत्काल बिबिसार बोल उठा"यह क्या ? तुझे तो ऐसे पीने के प्रति नफरत थी।" "हां, अभी भी नफरत है। फिर भी नियमित रूप से मैरेयपान करती हूं।" "यह उचित नहीं है।" "आपकी दृष्टि में यह उचित नहीं है । परन्तु बिना नशे का जीवन मुरझाया हा-सा लगता है । मनुष्य को जब वास्तविक नशा प्राप्त नहीं होता तब वह कृत्रिम नशे की शरण में जाता है।" कहकर आम्रपाली ने एक ही श्वास में मैरेय का पात्र खाली कर डाला। बिबिसार ने केवल एक चूंट पीकर मैरेय का पात्र रख दिया। तत्काल आम्रपाली बोली-"क्यों ? बिना नशे का जीवन आपको।" "प्रिये ! मेरा नशा मेरे भीतर की स्मृतियों में भरा पड़ा है। ऐसे कृत्रिम नशे की आवश्यकता नहीं रहती।" "स्मृतियों का नशा।'' उपेक्षा भरे हास्य से आम्रपाली बोल पड़ी। "तूने समझा नहीं।" "समझ गयी..." स्मृतियों का नशा पुरुषों के लिए कैसा होता है, मैं नहीं समझ सकती 'किन्तु स्त्रियों के लिए स्मृतियों का नशा आग जैसा बन जाता
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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