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________________ अलबेली आम्रपाली ३१६ असह्य अत्याचार किया है । लिच्छवियों के अन्याय का यही एक प्रतिकार है। तू मगध की महारानी बनकर रह । एक नारी को मनोरंजन का खिलौना बनाकर रखने वाले लिच्छवियों के प्रति मेरे प्राणों में भयंकर नफरत है । यदि तू वैशाली में नहीं होती तो।" "तो क्या?" "एक आदर्श नारी के इस भयंकर अपमान का बदला मैं अपनी तलवार से लेता''तू इस नरक से बाहर निकल जा । तेरी शोभा यहां नहीं, मेरे हृदय सिंहासन पर है।" कहकर बिंबिसार ने आम्रपाली को हृदय से लगा लिया। आम्रपाली कुछ भी नहीं बोली। वह अपने प्रियतम के आश्लेष से उत्पन्न आनन्द की ऊर्मियों में खो गई। दो क्षण मौन रहकर वह बोली-"प्रियतम ! आप घटिका तक यहां बैठे, मुखवास लें । मैं वस्त्रगृह में जाकर आती हूं।" बिंबिसार के बाहुपाश से मुक्त होकर आम्रपाली कक्ष के बाहर निकल गई। बिबिसार पुनः शय्या पर बैठ गया : उसने सोचा, यदि आम्रपाली साथ में चलेगी तो कल ही यहां से राजगृही चला जाना है। लगभग दो घटिका के बाद आयपाली सोलह श्रृंगार कर शयनकक्ष में आई । उसे उस समय देखकर बिबिसाअअवाक् बन गया। और.. रात्रि कब पूरी हुई, दोनों को कोई भान नहीं रहा । किन्तु इस मिलन की पृष्ठभूमि में नृत्य करने वाला प्रकृति का संकेत कुछ अनोखा था। तीन वर्ष के पश्चात् होने वाले इस मिलन की मधु रजनी मातृत्व का वरदान देने वाली होगी, ऐसी कल्पना दोनों में से किसी को नहीं थी । आम्रपाली ऋतुस्नाता थी। इस प्रकार आनन्द ही आनन्द में दस दिन बीत गए । जो आम्रपाली अनेक मुलाकातियों से मिलती थी, वह आज अपने शृंगार भवन से बाहर ही नहीं निकलती। __ प्रियतम और प्रिया का विश्व केवल सप्तभूमि प्रासाद की छठी मंजिल में समा गया था। बारहवें दिन प्रातःकाल ही आम्रपाली को वमन हुआ. 'बार-बार जी मिचलाने लगा.'वह समझ गई. 'उसने मगधेश्वर के समक्ष अपना संशय प्रकट किया । बिंबिसार बहुत प्रसन्न होकर बोला-"प्रिये ! यदि तेरा संशय ठीक होगा तो वह मगध का युवराज बनेगा' 'मगध का भावी सम्राट होगा। अब हमें शीघ्र ही राजगृही की ओर प्रस्थान कर देना चाहिए।" "महाराज ! यह मेरे लिए शक्य नहीं है।" _ "तेरे लिए अशक्य क्यों ? पति के घर जाना अनुचित नहीं होता । अन्याय नहीं होता।" बिंबिसार ने कहा।
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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