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________________ अलबेली आम्रपाली २४६ कल मन्दिर के मुख्य द्वार पर जिस अनिन्द्य तरुणी को देखा था आज वह वहां नहीं थी. हो भी कैसे ? क्योंकि आज वह स्वयं जल्दी आ गया था । उसने सोचा - मन्दिर में जाकर खोजना चाहिए। तत्काल उसका अन्तर्मन बोल उठा, उपासना-गृह में किसी भी नारी को देखने जाना महान् दोष है । किसी भी उपासना स्थान में चित्त केवल अपने इष्ट की ओर ही लगा रहना चाहिए । यदि चित्त वहां भी चचल होता है तो वह बहुत बड़ा अपराध है । नहीं, नहीं, नहीं तो क्या बाहर खड़ा रहूं ? नहीं, यह भी उचित नहीं है । क्योंकि मैं एक परदेसी हूं। इस प्रकार खड़ा रहूंगा तो लोगों के मन में संशय हो सकता है। इससे तो अच्छा है मन्दिर के भीतर जाऊं, तन्मय होकर पार्श्वप्रभु का ध्यान धरूं मन को उसमें लगाऊं और तन्मय हो जाऊं । ऐसा निश्चय कर वह मन्दिर के भीतर गया । जिस तरुणी को वह देखने आया था, वह तरुणी भगवान् पार्श्व की स्तुति कर रही थी । fafaसार की दृष्टि स्तवन कर रही उस तरुणी पर पड़ी । "ओह ! यह तो वही है।" इतना विचार मन में आया, परन्तु वह वहां नहीं रहा । तत्काल बाहर आ गया । वह धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा । मन उस तरुणी में उलझा हुआ था। उसने मुड़कर देखा, तरुणी मन्दिर से बाहर निकल रही थी । बिबिसार वहीं खड़ा हो गया । तरुणी उसके पास से गुजरी और उसने fafaसार को देखा। एक क्षण के लिए दोनों की दृष्टि मिली । बिंबिसार ने सोचा, नारी का क्या समग्र माधुर्य आंखों में ही बसता है ? तरुणी आगे बढ़ी और अपने भवन में चली गयी । fafaसार विचारों की उलझन में उलझा रहा। जब वह थक गया तब एक दुकान के कोने पर जाकर बैठ गया। उस दुकान पर माल खरीदने वाले आ-जा रहे थे । एक अधेड़ उम्र का सेठ गद्दी पर बैठा था । नौकर ग्राहकों को सम्भाल रहे थे । सेठ धनदत्त को आज अत्यधिक आश्चर्य हो रहा था कि इतनी बिक्री पिछले बारह महीनों में नहीं हुई थी एक वर्ष पूर्व उसकी यह दुकान मुख्य दुकान मानी थी। आर्थिक दृष्टि से विपन्नता आने पर व्यापार भी कम हो गया और सेठ उत्साहहीन होकर बैठ गया । व्यापार भी धीरे-धीरे कम होता गया । परन्तु आज'''। सेठ सोच रहा था । उसकी दृष्टि एक ओर बैठे बिंबिसार पर गयी । उसने सोचा, यह कोई भी क्यों न हो, पर है यह अवश्य पुण्यशाली । इसके चरण पड़ने से मेरी दुकान में ग्राहकों की भीड़ लग गयी। अभी भी ग्राहकों का
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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