SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 257
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४८ अलबेली आम्रपाली हिंडोल राग की संपन्नता होते ही कामप्रभा खड़ी हुई और बोली-"प्रिय जयकीर्ति ! आपका परिचय 'आपकी कला और आपका।" बीच में ही बिंबिसार हंसते-हंसते बोले--"देवि ! आपके उदार हृदय से मैं परिचित हो गया हूं । वास्तव में मैं आज धन्य बन गया।" __ इस प्रकार बातें कर बिंबिसार खड़े हुए और कामप्रभा से बोले- "देवि ! इतना विलंब होगा, ऐसी कल्पना नहीं की. अब मुझे विदा करें।" "नहीं, प्रिय ! अब तो आपको यहीं रहना होगा। अभी तो मैंने आपका सत्कार किया ही नहीं है।" "देवि ! आपने आज जो मेरा सत्कार किया है, वह मेरे लिए प्रेरणारूप है। इससे और अधिक सत्कार क्या...? मुझे सिप्रा के तट पर भी जाना है।" "मैं भी जाऊंगी.. मेरे साथ ही चलें।" "क्षमा करें। फिर कभी आऊंगा।" बिबिसार ने विनम्रता से कहा। "कब आएंगे?" "मैं तो यहां निकम्मा हूं। जब चाहूंगा तब आ जाऊंगा।" कामप्रभा बिबिसार को रोकना चाहती थी परन्तु वह वैसा कर नहीं सकी। वर्षा भी शांत हो गई थी। कामप्रभा के रथ में बैठकर बिंबिसार प्रस्थित हुए। पक्षिगण प्रातःकाल का संगीत गा रहे थे। और कामप्रभा के मन की बात मन में ही रह गई थी। ५१. आकस्मिक योग कामप्रभा के भवन से निकलकर बिबिसार सीधा पांथशाला में गया और दामोदर को साथ ले शीघ्र ही सिप्रा नदी के तट पर पहुंच गया। सूर्योदय हो चुका था। सारी रात वर्षा पड़ने के कारण सिप्रा नदी भी नवयौवना नारी के अधीर हृदय की भांति बन गयी थी। बिंबिसार एक निकट के घाट पर स्नान आदि से निवृत्त होकर दामोदर के साथ रवाना हो गया। उसके मानस-पटल पर उस अनिन्द्य सुन्दरी की छवि बारबार उभर रही थी। बाजार में आने के पश्चात् बिंबिसार ने दामोदर को पांथशाला की ओर भेज दिया और स्वयं चिन्तामणि पार्श्वनाथ के मन्दिर की ओर चल पड़ा।
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy