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________________ २४२ अलबेली आम्रपाली "देवी ?" बिंबिसार के नयनों में आश्चर्य उभरा। ऐसे बरसते पानी में और मेरे जैसे अपरिचित व्यक्ति से मिलने कौन आए ? वे खड़े हो गए' 'पांथशाला का प्रबंधक प्रीतिमती को साथ ले खंड में प्रविष्ट हा और बोला--"महाराज ! महादेवी कामप्रभा की मुख्य परिचारिका आपसे मिलने आई है।" "मुझसे मिलने ?" "जी हां..." "जयकीति आपका ही नाम है न ?" प्रीतिमती ने मस्तक नमाकर कहा। "हां, क्या आज्ञा है ?" बिंबिसार ने प्रश्न किया। खंड में बिठाने लायक कोई दूसरा आसन नहीं था। दामोदर ने प्रीतिमती को पहचान लिया, क्योंकि आज प्रात: सिप्रा नदी के तट पर इसी बहन ने उससे पूछताछ की थी। परन्तु वह कुछ भी नहीं बोला 'खंड से बाहर चला गया। प्रबन्धक भी नमस्कार कर बाहर निकल गया। प्रीतिमती खड़ी ही रही। उसने कहा-"सेठजी ! आज प्रातः आपने एक वृद्धा के प्राण बचाए थे.'आपने अपने प्राणों को जोखिम में डालकर भी यह कार्य किया. 'महादेवी कामप्रभा उस समय वहीं थीं। आपके इस साहस को देखकर देवी ने आपको लिवाने मुझे भेजा है।" "महादेवी कामप्रभा ! देवि ! मैं इस नगरी से सर्वथा अपरिचित हूं, इसलिए।" बीच में प्रीतिमती ने कहा। "महादेवी आप जैसे साहसिक का अभिनंदन करना चाहती हैं। मैं रथ लेकर आई हूं.''आप मेरे साथ ही चलें...।" बिबिसार द्विविधा में पड़ गए। एक अपरिचित स्त्री के पास क्यों जाया जाए? मैंने ऐसा कौन-सा साहसिक कार्य कर डाला, जिसका अभिनंदन हो? कर्तव्य का क्या पुरस्कार' ? बिबिसार को विचारमग्न देखकर प्रीतिमती बोली-"आप किसी प्रकार की चिन्ता न करें। मैं स्वयं आपको यहां पहुंचा दूंगी।" "ओह ! तब तो ऐसी महान् नारी के पास मेरे जैसा छोटा आदमी जा ही नहीं सकता । मुझे क्षमा करें।" बिंबिसार ने कहा। "आप किसी प्रकार का संकोच न करें। मेरे साथ चलें।" बिंबिसार प्रीतिमती के साथ गए। दामोदर पांथशाला में रुका रहा। वर्षा हो रही थी। रथ एक घटिका में देवी कामप्रभा के विशाल भवन के प्रांगण में आ पहुंचा।
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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