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________________ अलबेली आम्रपाली २४३ प्रीतिमती रथ से नीचे उतरी और बोली - " भीतर पधारें ।" एक सेवक छत्र लेकर आ गया था । एक परिचारिका प्रीतिमती से आकर बोली -- "महादेवी अपने शृंगारकक्ष में अतिथिदेव की प्रतीक्षा कर रही हैं। आप आयुष्मान् को वहीं ले जाएं ।” प्रीतिमती ने दासी से कहा - "जा, महादेवी को खबर दे कि मैं अतिथि को वहीं ला रही हूं ।' परिचारिका तीव्र गति से चली गई । प्रीतिमती जयकीर्ति को आदरपूर्वक ऊपर जाने वाले सोपानश्रेणी की ओर गई । fafबसार ने देखा, मकान तो अत्यन्त भव्य और रमणीय है, सुन्दर है, आंख की पलकों में समाने वाला है, परन्तु वैशाली के सम्मभूमि प्रासाद जैसी इसमें शोभा नहीं है। ऊपर पहुंचते ही बिंबिसार को किसी खंड से वीणावादन की आवाज सुनाई दी वीणा का वह बेसुरा स्वर बिंबिसार के चित्त को व्यथित कर रहा था । उन्होंने सोचा, कौन कर रहा है वीणा का अनादर ? कलाकार कभी भी कला का दोष सहन नहीं कर सकता। बिंबिसार ने प्रीतिमती से पूछा - " बहन ! वीणा कोन बजा रहा है ?" वह बोली -- "वीणावादक आर्य सुप्रभ आए हों, ऐसा प्रतीत होता है ।" इतने में ही शृंगारकक्ष आ गया । एक पुष्पमाला हाथ में थामे कामप्रभा द्वार पर ही खड़ी थी । बिबिसार ने देखा, देवी में रूप है, यौवन है, मस्ती है किन्तु जीवन की सौरभ नहीं है। बिबिसार ने कामप्रभा को हाथ जोड़कर नमस्कार किया । कामप्रभा ने बिंबिसार के गले में माला पहनाते हुए कहा - ' कर आज मैं धन्य हुई अंदर पधारें ।" fafaसार कामप्रभा के पीछे-पीछे शृंगार-कक्ष में गए । -"आपका स्वागत ५०. मन की मन में रह गई कामप्रभा का शृंगार-कक्ष अत्यन्त स्वच्छ, सुन्दर और यौवन-विलास की सामग्री मे भरा-पूरा था । Maraभा ने बिबिसार को एक आसन पर बैठने की प्रार्थना की। वे आसन पर बैठते-बैठते बोले - "देवि ! मेरे जैसे सामान्य व्यक्ति का इतना सम्मान" । " बीच में ही कामप्रभा ने मीठे स्वरों में कहा- “श्रीमन् ! आपको सामान्य मानने वालों को मैं बुद्धिमान नही कह सकती । आप छद्मवेशी हैं, यह मानते
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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