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________________ अलबेली आम्रपाली २४१ मैं अपने पुरुषार्थ के बल पर उसे लाकर अपनी हृदय-रानी के रूप में अपने ही भवन में रख सकं । जनपदकल्याणी के पद-गौरव को पैरों से रौंदकर आम्रपाली बिंबिसार की अद्धांगिनी बने—यही उसके लिए तथा मेरे लिए गौरवास्पद होगा। इधर-उधर टहलते समय उनके मन में इस प्रकार के अनेक विचार आ-जा रहे थे । उसके बाद उन्होंने पुनः पत्र पढ़ा 'शय्या पर लेटे-लेटे । __ आज बाजार में जाने की इच्छा नहीं हुई। पत्र का उत्तर क्या दिया जाए, यह विचार उनके लिए मुख्य बना । अन्त में उन्होंने निश्चय किया कि दीपमालिका के बाद कहीं-न-कहीं स्थिर हो जाना है, पुरुषार्थ करना है और फिर अति सम्मान के साथ आम्रपाली और नूतन अतिथि को लाना है। संध्या हो गयी। वर्षा पुनः गाजबीज के साथ प्रारम्भ हुई। और उसी समय एक रथ पांथशाला में प्रविष्ट हुआ। रथ को देखते ही पांथशाला का व्यवस्थापक वर्षा के बीच दौड़कर रथ के पास पहुंचा । क्योंकि वह देवी कामप्रभा के रथ और सारथि–दोनों से परिचित था। रथ में प्रीतिमति बैठी थी। पांथशाला के संचालक ने नमस्कार कर पूछा"क्या आज्ञा है?" प्रीतिमति बोली-"जयकीति नाम वाले कोई परदेसी व्यक्ति यहां ठहरे "हां, देवि 'ऊपर की मंजिल के कमरे में ठहरे हैं। क्या कोई काम है ?" हां, अत्यन्त महत्त्व का कार्य है। मुझे उनके पास ले चलो।" प्रीतिमती ने कहा। "देवि ! आप वर्षा में भीग जाएंगी' 'मैं ही उनको बुला लाता हूं।" "नहीं, मुझे ही जाना चाहिए।" कहकर प्रीतिमती रथ से नीचे उतरी। एक दास भी छत्र लेकर नीचे उतरा। बिंबिसार अपनी शय्या पर बैठे थे । आज प्रातः जिस अनिन्द्य सुन्दरी तरुणी को देखा था, वह उनके चित्त को मथ रही थी। उसने सोचा, पूर्व भारत में देवी आम्रपाली से अधिक सुन्दर कोई नारी नहीं है, किन्तु यह तरुणी तो आम्रपाली से भी रूप-माधुरी में सवाई है. वह कौन होगी? वह किसकी कन्या है ? एक बार देख लेने पर आंखों से दूर क्यों नहीं होती? इतने में दामोदर आकर बोला-"महाराज ! आपसे मिलने कोई देवी आयी
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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