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________________ २४. अलबेली आम्रपाली आ जाएं। मैं आपकी प्रतीक्षा कर रही हूं। आप विलम्व किए बिना अपनी प्रियतमा के आंसू पोंछने अवश्य ही पधार जाएं। __ स्वामिन् ! मैं स्वस्थ हूं'. 'केवल आपके वियोग से सहज उभरनेवाली उदासी को भोग रही हूं । आप स्वस्थ हैं, यह जानकर परम प्रसन्नता का अनुभव होता है। किन्तु आपके भोजन आदि की व्यवस्था कैसे होती होगी ? पांथशाला में रहना, भोजनशाला में भोजन करना, वणिक के रूप में फिरना, यह सब आपको कैसे अनुकूल रहता होगा? अब इन सारी व्यथाओं का अन्त आ गया है। आपकी दासी रजनीगंधा को देखने शीघ्र पधारें। ___ आप तो जानते हैं कि आपकी स्मृति मेरे उदर में सुरक्षित है । वैद्यराज का औषध प्रयोग भी चल रहा है। सभी परिकर मुझे प्रसन्न रखने का प्रयत्न कर रहे हैं । परन्तु आपका वियोग मेरे मन को व्यथित कर डालता है। वह मथ देता है मेरी सारी आशाओं को। आप ही व्यथाओं को दूर कर सकते हैं। वर्षा का समय है, इसलिए आप अश्व पर नहीं, रथ लेकर आएं। आपकी महाबिंब वीणा मेरे शयनकक्ष में रखी है। अनेक बार उस वीणा को देखकर हृदय भर आता है। जिस वीणा पर नाचनेवाली आपकी कला ने मिलन माधुरी का साक्षात् कराया था, वह वीणा आपके बिना वियोगिनी नारी की तरह मौन-रुदन कर रही है। प्रियतम ! उस वीणा की तरह ही आपकी प्रियतमा की परिस्थिति है: 'न स्वर है, न रस है, न आनन्द है, न ऊर्मि है और न काव्य है। बस, अब आप यहां आ जाएं । मुरझाई वल्ली को संजीवन करने आप शीघ्र पधारें। मेरा एक-एक क्षण युग जैसा बीत रहा है।" बिंबिसार ने पत्र को एक बार पढ़ा, दो बार पढ़ा, तीन बार पढ़ा' पर मन तृप्त नहीं हुआ। दामोदर ने दूसरी बार आकर कहा-"महाराज ! भोजन ठण्डा हो गया "ओह !" कहकर बिबिसार खड़े हुए। प्रिया का प्रेम-पत्र पुनः नलिका में डाला और उसे अपने सिरहाने के पास रखकर भोजन करने गए। __भोजन ठण्डा हो गया था, परन्तु आज भूख तीव्र लगी थी और प्रिया के संदेश से हृदय में आनन्द समा नहीं रहा था। भोजन से निवृत्त होकर, वे आठ-दस बार इधर-उधर घूमे और सोचते रहे प्रिया को क्या लिखू। 'क्या अभी वहां जाऊं' 'नहीं, नहीं लिच्छवियों में असहनशीलता बहुत है मैं निष्क्रिय रहकर सप्तभूमि प्रासाद में कितने समय तक रह सकता हूं ? वियोग की व्यथा जितनी वह सहन कर रही है, उतनी ही मुझे भी सहनी है । परन्तु देवी आम्रपाली के पास तभी जाना उचित होगा जब
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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