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________________ १६ अलबेली आम्रपाली पूर्व भारत के अन्य राज्यों के मस्त युवक वहां आते, मौज-मजा करते और पुष्कल स्वर्ण बिखेर जाते। ___ व्यापार और उद्योग की प्रचुरता के कारण जनता में आर्थिक विपन्नता नहीं थी। किन्तु संपन्नता के साथ ही वैशाली का युवावर्ग रूप, नृत्य, संगीत और मदिरा का मस्त पुजारी बन गया था। राजतन्त्र में भौतिक समृद्धि को प्रजाजीवन का मापदण्ड माना जाता है। साथ ही साथ उसमें विलासप्रियता अनिवार्य बन जाती है। __इसीलिए आम्रपाली के रूप पर पांच-पचास नहीं, हजारों नयन चंचल हो रहे थे । आम्रपाली जैसी रूपसी नारी किसी एक लिच्छवी के घर की वधूरानी बने, यह लिच्छवी युवकों के जीवन-मरण का प्रश्न बन गया था। इसलिए गणनायक आम्रपाली को जनपदकल्याणी के गौरव से मंडित करना चाहते थे। यदि यह निर्णय नहीं लिया जाता तो लिच्छवी युवकों के शौर्य के बन्धन पर आधारित एकता छिन्न-भिन्न हो जाती। यह भय वहां व्याप्त था। यदि यह एकता टूट जाती तो वैशाली को चरण तले रौंदने के इच्छुक अनेक महाशक्तियों का मार्ग सुगम हो जाता। यदि गणतन्त्र की सुरक्षा इष्ट है तो लिच्छवियों की एकता को बनाए रखना अनिवार्य हो गया था। इसी कारण से आम्रपाली गणतन्त्र के नायकों के लिए शिरशूल बन गई थी। चैत्र शुक्ला पूर्णिमा ! प्रभात की शुभ वेला! आम्रपाली का आज सोलहवां जन्म दिन था। वह साज-सज्जा करने के लिए स्नानगृह में गई। पुत्री द्वारा आश्वस्त किए जाने पर भी महानाम रात भर नहीं सो सका। उसको एक भय सता रहा था। यदि आम्रपाली गणतन्त्र के निर्णय के प्रतिकूल कोई आवाज उठाएगी तो एक नयी परिस्थिति खड़ी हो जाएगी। आम्रपाली बाल्यकाल से ही स्वतन्त्र मिजाज वाली रही है। यह राजशाही लाड़-प्यार में पली-पुसी है और नत्य-संगीत में निष्णात बनी है। . महानाम उसे यह भी नहीं कह सकता था कि तू गणतन्त्र के निर्णय को स्वीकार कर लेना। इसका कारण यह था कि ऐसा कहने का सीधा अर्थ होता पिता स्वयं अपनी पुत्री को नगर-नारी बनने का आदेश दे रहा है। इस प्रकार महानाम दोनों ओर से मनोव्यथा का अनुभव कर रहा था। सूर्योदय से पूर्व ही आम्रपाली स्नान आदि से निवृत्त होकर वस्त्रालंकारों को धारण कर पिताश्री के खंड में आई और विचारमग्न पिताश्री के चरणों में प्रणाम किया। महानाम ने पुत्री के मस्तक पर हाथ रखा और आशीर्वाद देते हुए बोला
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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