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________________ अलबेली आम्रपाली १५ महानाम अपनी तेजस्वी कन्या के सामने देखता रह गया। ३. महानाम की मनोवेदना वंशाली का गणतन्त्र आठ कुलों के आठ राज्यों के समूह से निर्मित हुआ था। विदेह, लिच्छवी, क्षात्रिक और वज्जी-ये चार कुल प्रधान थे । इनके राज्य विस्तृत थे । उग्र, भोज, इक्ष्वाक और कौरव--- ये चार कुल छोटे थे। इनके राज्य भी छोटे थे किन्तु अष्टकुल के नाम से इस गणतन्त्र की रचना की गई थी। वैशाली मूलत: वज्जियों की राजधानी थी। इसलिए इस गणराज्य को लोग वज्जीसंघ के रूप में जानते थे। वैशाली गणतन्त्र अत्यन्त समृद्ध था। लिच्छवी और वज्जी पुरुष बहुत पराक्रमी थे । वे किसी भी संकट का सामना करने के लिए तैयार रहते थे। इसलिए अन्यान्य राज्य इनसे भय खाते थे। वैशाली गणतन्त्र में अनेक शूरवीर सेनानायक थे। उनके चार-छह धनुर्धर ऐसे थे जो अनायास ही अर्जुन की स्मृति करा देते थे । गदायुद्ध में ऐसे कुशल अनेक महाबली योद्धा थे। भल्ल निष्णात, अश्व निष्णात, रथ चालन में निपुण ऐसे सैकड़ों योद्धा भी थे। इस गणतन्त्र में ७७७७ प्रतिनिधि थे। इसको गण-सन्निपात और लोकगभा के विशाल मंडप को गणसभा-स्थल या 'संथागार' कहा जाता था। जन प्रतिनिधियों का संचालन करने के लिए एक गणनायक होता था। उसे गणपति भी कहते थे । इसके अतिरिक्त सचेतक, रक्षक, गणक आदि अनेक अधिकारी रहते वैशाली की समृद्धि का मूल कारण यह था कि उसकी सीमा में दो खाने उपलब्ध थीं। एक थी स्वर्ण की खान और दूसरी थी नीलम की खान । दोनों खानों में अटूट सम्पदा थी और वह सम्पदा वैशाली के भण्डार को भरा-पूरा रखती थी। वैशाली नगरी कौशल देश की राजधानी श्रावस्ती और मगध की राजधानी राजगृह के मुख्य मार्ग पर अवस्थित थी। इस दृष्टि से वैशाली का राजनीतिक, सामाजिक और व्यापारिक महत्त्व था। साथ ही साथ वैशाली गणराज्य वत्स . मगध, कौशल और काशी जैसे समृद्ध और वैभवशाली राज्यों से घिरा हुआ था। वैशाली की जनता सुखी थी। वहां के गणनायक में राज्य-विस्तार की भावना नहीं थी । वे अपनी सीमाओं की सुरक्षा के लिए सदा तत्पर रहते थे। _ऐसा था वैशाली गणतन्त्र ! इसकी अति समृद्धि ने जनता में भोग-विलास की कामना को तीव्र बना डाला था। __नर्तकियों, नगर-नारियों और गणिकाओं का एक गुलावी बसन्त बाजार था।
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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