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________________ अलबेली आम्रपाली १४१ "प्रार्थना नहीं, आज्ञा प्रिये !" पद्मकेतु अत्यन्त उत्साहित होकर बोला । " अपना यह मिलन नीरव और अव्यक्त रहना चाहिए। आपका कोई मित्र यदि साथ होगा या आप इस विषय की कुछ बात करेंगे और यदि मुझे उसकी खबर पड़ेगी तो...।" कादंबिनी ने कहा । "नहीं, नहीं। अपना यह मिलन अपने दोनों के बीच ही स्मृति मात्र बना रहेगा " 'पद्मकेतु ने कहा । ..." "प्रिय ! मुझे अत्यन्त प्रसन्नता हुई मधुर बात किसी को भी कहें " कल चाहे आप इस प्रथम मिलन की ...." कादंबिनी बोली । और दूसरे दिन । रात्रि के दूसरे प्रहर की एकाध घटिका शेष थी। तब पद्मकेतु कादंबिनी के भवन के पास अश्वारूढ़ होकर आ पहुंचा । Shrift ने भी अपने श्वेत अश्व को तैयार कर रखा था। उसने पुरुष बेश धारण किया था । वह इसलिए कि किसी को यह आशंका न होने पाए कि पद्मकेतु के साथ नंश भ्रमण के लिए गयी है । दोनों तत्काल उपवन की ओर चले गए। दोनों के अश्व मन्द गति से चल रहे थे । नीरव और निर्जन मार्ग पर आकर पद्मकेतु ने कहा - "देवि ! आपका पुरुष वेश समझ में नहीं आया ।" " आप महाबलाधिकृत के पुत्र हैं। कोई देख ले कि आप एक नर्तकी के साथ फिरते हैं, इसलिए..." "ओह ! धन्य है तुम्हारी दीर्घदृष्टि ।" दोनों अश्व से नीचे उतरे । कादंबिनी चन्द्रमा की ओर देखती हुई एक ओर खड़ी हो गयी । "प्रिये ! क्या देख रही हो ?" " चन्द्रमा का खण्डित यौवन ।" कादंबिनी ने मधुर स्वर में कहा । " खण्ति यौवन..!" "हां, यह बेचारा खण्डित हो गया है। यह किसी के एकान्त को सह नहीं सकता ।" पद्मकेतु निकट आया । उसने कादंबिनी का हाथ पकड़ा । धैर्य का बांध टूट चुका था । " पुरुष धेर्य के शत्रु होते हैं ।" कादंबिनी ने कहा । "हां, यह सच है ।" कहते-कहते उसने कादंबिनी को बाहुपाश में जकड़ लिया और उसके अधर पर चुम्बन"।
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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