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________________ १४२ अलबेली आम्रपाली और दूसरे ही क्षण भूमि पर टूटे वृक्ष की भांति निर्जीव होकर गिर पड़ा। एक क्षण का बिलम्ब किए बिना कादंबिनी अपने अश्व पर आरूढ़ होकर जिस मार्ग से आई थी, उसी मार्ग से लौट गयी। और सूर्योदय होते ही उपवन के माली ने पद्मकेतु का शव देखा और उसने अधिकारी को सूचना दी। ___ महाबलाधिकृत आए और पद्मकेतु के नीले शरीर को देख स्तम्भित रह गए। ३१. पहचान शेष पो आचार्य जयकीर्ति कौन है, यह जानने के लिए चरनायक सुनन्द आम्रपाली के भवन पर जाने वाले थे। पर पद्मकेतु के आकस्मिक निधन के समाचार सुनकर वे सीधे महाबलाधिकृत के भवन पर पहुंचे। __महाबलाधिकृत अत्यन्त धैर्य संपन्न थे। पर एकाकी पुत्र पदमकेतु के आकस्मिक अवसान पर उसका धैर्य छिन्न-भिन्न हो गया था और उसकी पत्नी का रुदन रुक नहीं रहा था। सेनापति सिंह और अनेक अन्यान्य गणनायक भी वहां आ पहुंचे। पद्मकेतु का निर्जीव शव एक कक्ष में रखा गया था। अगदतंत्र का निष्णात वैद्य भी वहां आ पहुंचा। उसने शव को चारों ओर से देखा और गंभीर होकर बोला-"आर्य सुनंद ! इस शव का परीक्षण कर मैं बहुत आश्चर्यचकित हूं। मृत्यु विष से हुई है पर इनको किसी ने विषपान कराया हो, ऐसा नहीं लगता । समग्र शरीर में कोई भी स्थल पर विष-जन्तु, प्राणी या सर्प के दंश का चिह्न नहीं है । फिर भी विष अत्यंत उग्र और भयंकर है। संभव है यह किसी विषधर का विष हो। पर..." "पर क्या...?" _ "यदि विषधर काटता तो कहीं न कहीं दंश का चिह्न तो रहता ही। पर वह नहीं है।" ___ "आश्चर्य ! वैद्यराजजी ! क्या आपको यह अनुमान नहीं होता कि किसी ने तीव्र विष का पान कराया है ?" "नहीं। विष का सीधा स्पर्श होता तो जीभ, दांत और गले का अमुक भाग पर उसका निशान रह जाता । परन्तु ऐसा, पूरे शरीर में कहीं नहीं मिला। हां, होंठ अत्यधिक लाल हैं।" वैद्यराज ने कहा। "उष्ट्र विष...!" तत्काल वैद्यराज बोला--"यह विष संसार भर के सभी विषों से अत्यधिक उग्र और प्रभावक होता है। सूई की नोंक पर टिके उतने विष के स्पर्शमात्र से
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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