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________________ १४० अलबेली आम्रपाली तीन दिन के बाद। "कादंबिनी ने 'कामातुरा' नाम का अभिनव किया। वैशाली जन उसके वश में हो गये। दोनों प्रकार के नृत्य देखने के पश्चात् कादंबिनी का सहवास पाने के लिए लोग उत्कंठित हुए । विशेषतः महाबलाधिकृत का पुत्र, चरनायक और धनुर्विद्या में निष्णात एक वीर-ये सब कादंबिनी को पाने के लिए पागल हो रहे थे। एक दिन पद्मकेतु कादंबिनी के भवन पर आ पहुंचा। मुख्य परिचारिका ने उसका स्वागत किया और कादंबिनी के कक्ष में पहुंचा दिया। औपचारिक बातचीत के पश्चात् कादंबिनी ने पूछा-"श्रीमन् ! आप कुछ विचार में हैं ?" "पदमकेतु बोला-'देवि ! मैंने सुना है आपका रक्षण कोई यक्ष करता है। क्या यह सच है ?" "हां, प्रिय ! पूर्वजन्म में मैं किसी यक्ष की पत्नी थी। मेरे प्रति मोह होने के कारण वह मेरी रक्षा करता है।" “मतलब?" "कोई मेरे साथ बलात्कार करने का प्रयत्न करे या मेरी इच्छा के विरुद्ध मेरे यौवन से खिलवाड़ करना चाहे तो वह यक्ष तत्काल उसको मार डालता "किन्तु आपकी सहमति से..." बीच में ही कादंबिनी बोल उठी-"वहां मेरा यक्ष निरुपाय होता है।" "मैं आश्वस्त हुआ। मैं एक आशा से आपके पास आया हूं।" "यौवन यौवन की भाषा समझ जाता है. 'महाराज ! आपकी प्रेमभरी दृष्टि मेरे प्राणों में विचित्र रस उत्पन्न कर रही है।" "देवि ! मैं जोर-जबरदस्ती करना नहीं चाहता''आपकी इच्छा के अनुकूल..।" ___ कादंबिनी ने कहा-"प्रिय ! अपने मिलन का यह स्थान उचित नहीं है। बसन्त की बहार "नीरव रजनी''जनमानस शून्य उपवन ही इसके लिए योग्य "प्रियतम ! कल आप मुझे रात्रि के दूसरे प्रहर के बीतते-बीतते लेने आ जाना।" "अच्छा--मैं अपना रथ लेकर आऊंगा।" पद्मकेतु ने कहा। "नहीं, नहीं, नहीं, रथ नहीं। आप अपने अश्व पर ही आना। मैं अपने अश्व के साथ तैयार रहूंगी.''आपको मेरी एक प्रार्थना स्वीकारनी होगी।" कादंबिनी ने कहा।
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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