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________________ २ अलबेली आम्रपाली "हां, किन्तु मेरा अश्व चौंका और भागा। मैं निशाना साधूं इतने में ही देवी की अन्तिम चीख मेरे हृदय को चीर कर आर-पार निकल गयी । " मावा के दोनों नयन अश्रु से छलक उठे । उसका हृदय फटने लगा । उसका साहस टूट गया और वह बुत की भांति नीचे बैठ गयी । इधर पहाड़ी के प्रस्तर गृह में बिंबिसार पुरुषवेशधारिणी आम्रपाली को जागृत करने का सतत प्रयास कर रहा था । शीतल जल के छिड़काव से धीरेधीरे मूर्च्छा टूटने लगी । उसने नेत्र - पल्लव खोले । उसने देखा, एक नवजवान सामने बैठा है । स्वयं पत्थर की शिला पर पड़ी है । एक दीपक मंद-मंद प्रकाश दे रहा है । उस खण्ड में कोई साधन - विशेष नहीं है । आम्रपाली ने भयमिश्रित दृष्टि से चारों ओर देखा । बिंबिसार बोला - "देवि ! आप भयमुक्त हैं ।" मधुर स्वर से तथा देवि के सम्बोधन से आम्रपाली चौंकी और क्षीण स्वर में बोली - "हुं" बीच में ही बिंबिसार बोला - "देवी ! आप चिन्ता न करें। यहां किसी हिंसक प्राणी का भय नहीं है ।" "आप...?" "मैं मालव देश का राजपूत हूं। आप यदि उठें तो मैं आपको जलपात्र दूं ।” बिबिसार ने कहा । बिबिसारक तेजस्वी बदन को निहारती हुई आम्रपाली शिलाखण्ड पर बैठी । उसने देखा अपने मस्तक की पगड़ी गिर जाने के कारण केशराशि खुली हो जाने के कारण ही इस युवक ने मुझे 'देवी' शब्द से सम्बोधित किया है । आम्रपाली ने भयाक्रान्त स्वर में पूछा - " वह भयंकर वराह..?” "देवि ! आपका आयुष्य लम्बा था । वराह आपको कुछ हानि पहुंचाए, उससे पहले ही उसकी मौत हो गयी ।" "मौत ? उसका नाश किसने किया ?" "देवि ! आपके भाग्य ने परन्तु आपका प्रेमी..?” "मेरा प्रेमी ..? " आम्रपाली ने पूछा । "आपके साथ जो नवयुवक था ..?" "उसका क्या हुआ ?" "मैं यह नहीं जानता किन्तु वराह के पंजों से वह सही-सलामत बच गया । " आम्रपाली ने मन-ही-मन कहा - 'कायर !' दो क्षण मौन रहकर वह
SR No.032425
Book Titlealbeli amrapali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Chunilal Dhami, Dulahrajmuni
PublisherLokchetna Prakashan
Publication Year1992
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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