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________________ सकता है। क्योंकि एक भव में दो बार उपशम श्रेणी चढ़ने का उल्लेख मिलता है। यदि पतितोन्मुखी जीव सातवें या छठे गुणस्थान में नहीं संभलता है तो पांचवें और चौथे गुणस्थान में आ जाता है। यदि अनन्तानुबंधी चतुष्क का उदय आ जाता है तो सास्वादन सम्यक्दृष्टि होकर पुनः मिथ्यात्व में पहुंच जाता है। 395. निधत्ति किसे कहते हैं? उ. कर्म की वह अवस्था जिसमें उदीरणा व संक्रमण नहीं होता, उद्वर्तना एवं संक्रमण हो सकते हैं, वह निधत्ति है। इसमें कर्म की वृद्धि एवं ह्रास को अवकाश रहता है। यह स्थिति तृणवनस्पति जैसी है, जो वर्षा में बढ़ती है और वर्षा के अभाव में घटती है। 396. निकाचना किसे कहते हैं? उ. जिन कर्मों की जितनी स्थिति व विपाक है, उनको उसी रूप में भोगना निकाचना है। उनका आत्मा के साथ गाढ़ सम्बन्ध होता है। 397. निधत्ति व निकाचना में क्या अन्तर है? उ. निकाचना में उद्वर्तन, अपवर्तन, उदीरणा, संक्रमण कुछ भी नहीं होता। यह स्थिति गोदरेज के ताले की सी है, जो दूसरी चाबियों से खुल नहीं सकता। निधत्ति में भी उदीरणा व संक्रमण नहीं होता पर उद्वर्तन और अपवर्तन होता है। 398. बंध, उदय, उदीरणा, वेदन, उद्वर्तन, अपवर्तन, संक्रमण, निधत्ति, निकाचना और निर्जरा ये कर्मों की अवस्थाएं हैं। ये आत्म-प्रदेशों से चलित कर्मों की होती है या अचलित कर्मों की? उ. एक निर्जरा चलित कर्मों की होती है। शेष अवस्थाएं अचलित कर्मों में ही घटित होती है। 399. किसी भी कार्य की निष्पत्ति में क्या केवल कर्म ही उत्तरदायी है? उ. कार्य की निष्पत्ति में केवल कर्म ही उत्तरदायी नहीं है। इसके लिए कर्म सहित पांच कारण माने गए हैं(1) काल, (2) स्वभाव, (3) कर्म, (4) पुरुषार्थ, (5) नियति। इन पांचों को समवाय कहा जाता है। 1. भ. श. 1, 3-1 सूत्र 28 से 31 90 कर्म-दर्शन
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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