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________________ 377. उदीरणा कितनी कर्म प्रकृतियों की होती है और किन-किन गुणस्थानों में होती है? उ. पहले से छठे गुणस्थान तक जिन-जिन कर्म प्रकृतियों का उदय होता है उन-उन प्रकृतियों की उदीरणा भी हो सकती है। सातवें से 13वें गुणस्थान तक उदय योग्य प्रकृतियों में साता वेदनीय, असाता वेदनीय एवं मनुष्यायुष्य इन तीन प्रकृतियों की उदीरणा न होने से जितनी प्रकृतियों का उदय होता है उदीरणा इन तीन की कम होती है। 14वें गुणस्थान में किसी कर्म की उदीरणा नहीं होती है। तीसरे गुणस्थान को छोड़कर पहले से छठे गुणस्थान तक सात या आठ कर्मों की उदीरणा होती है। जब आयु की उदीरणा नहीं होती है तब सात कर्मों की अन्यथा आठ कर्मों की उदीरणा होती है। उदयमान कर्म आवलिका प्रमाण शेष रहता है तब उसकी उदीरणा रुक जाती है। तीसरे गुणस्थान में मृत्यु नहीं होती है अत: वहाँ आठों ही कर्मों की उदीरणा मानी जाती है। दसवें गुणस्थान की अन्तिम आवलिका में मोहकर्म की उदीरणा नहीं होती है। उदीरणा के लिए नियम है कि जो कर्म उदय प्राप्त है, उसकी उदीरणा होती है दूसरे की नहीं। उदय प्राप्त कर्म भी आवलिका मात्र शेष रह जाता है तब उसकी उदीरणा नहीं होती है। 378. क्या उदीरणा सभी कर्मों की संभव है? उ. उदीर्ण कर्म की जीव उदीरणा नहीं करता। उदीर्ण कर्म-पुदगलों की फिर से उदीरणा हो तो उदीरणा की कहीं भी परिसमाप्ति नहीं होती। जिन कर्म पुद्गलों की उदीरणा सुदूर भविष्य में होने वाली है अथवा जिनकी उदीरणा नहीं ही होने वाली है, उन अनुदीर्ण कर्म पुद्गलों की भी उदीरणा नहीं होती। जो कर्म उदय में आ चुके हैं वे सामर्थ्यहीन बन गये हैं उनकी भी उदीरणा नहीं होती। जो कर्म पुदगल वर्तमान में उदीरणा योग्य (अनुदीर्ण किन्तु उदीरणा योग्य) हैं, उन्हीं की ही उदीरणा होती है। 379. बंधे हुए कर्म कितने प्रकार के होते हैं? उ. बंधे हुए कर्म दो प्रकार के होते हैं—दलिक और निकाचित। 380. दलिक कर्म किसे कहते हैं? उ. जो कर्म त्याग तपस्या व पुरुषार्थ के द्वारा तोड़े जा सकते हैं वे कर्म दलिक कर्म कहलाते हैं। कर्म-दर्शन 87
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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