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________________ 375. कर्म की उत्तर प्रकृतियों में उदययोग्य परस्पर विरोधी प्रकृतियां कौन-कौन सी हैं? उ. उदय में परस्पर विरोध प्रकृतियांहास्य-शोक परस्पर विरोधी साता-साता परस्पर विरोधी निद्रा 5 परस्पर विरोधी अनन्तानुबंधी चतुष्क परस्पर विरोधी चारों कषाय का एक साथ उदय नहीं हास्य-शोक परस्पर विरोधी हास्य रति-शोक अरति परस्पर विरोधी तीन वेद परस्पर विरोधी आयुष्य-चार परस्पर विरोधी गति-चार परस्पर विरोधी जाति-पांच परस्पर विरोधी शरीर-तीन (औदारिक, तैजस, कार्मण) परस्पर विरोधी अंगोपांग-तीन परस्पर विरोधी संस्थान-छः परस्पर विरोधी संहनन-छः परस्पर विरोधी विहायोगति-दो परस्पर विरोधी आनुपूर्वी-चार परस्पर विरोधी त्रस-चार स्थावर चार (त्रस, प्रत्येक, पर्याप्त, बादर) (स्थावर, साधारण अपर्याप्त सूक्ष्म) सुभग, सुस्वर, शुभ, आदेय दुर्भग, दुःस्वर, अशुभ, अनादेय दो गोत्र परस्पर विरोधी 376. उदीरणा किसे कहते हैं? उ. जो कर्मदलिक बाद में उदय में आने वाले हैं उनको प्रयत्न विशेष से खींचकर उदय प्राप्त दलिकों के साथ भोग लेना उदीरणा है। उदीरणा से पूर्व अपवर्तना जरूरी होता है, जिससे कर्मों की स्थिति और रस दोनों कमजोर हो जाते हैं। ये दोनों कम होने से शीघ्र उदय प्राप्त दलिकों के साथ भोग लिये जाते हैं। 86 कर्म-दर्शन
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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