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________________ फलितों के साथ इन चार बंध की तुलना की जा सकती है1. प्रकृति बंध-इंजेक्शन का स्वभाव गर्म है या ठंडा, कठोर है या सरल। 2. स्थिति बंध—इंजेक्शन का अमुक समय तक असर। 3. अनुभाग बंध-इंजेक्शन के कार्य करने की शक्ति। 4. प्रदेश बंध—इंजेक्शन का पूरे शरीर में खून में मिल जाना। 277. कर्म बंध का मूल कारण क्या है? कर्म बंध का मूल कारण है अध्यवसाय, भाव, परिणाम। आत्मा के शुभाशुभ भाव या अध्यवसाय की धाराएं चाहे तीव्र हों, मंद हों, मध्यम हों शुभाशुभ कर्मबंध इन्हीं अध्यवसायों पर निर्भर है और कर्म का क्षय आत्मा के शुद्ध अध्यवसाय पर आधारित है। शुभ-अशुभ अध्यवसाय शुभाशुभ कर्म बंध का कारण कैसे बनता है तथा शुभ से शुद्ध अध्यवसाय में व्यक्ति कैसे पहुंच जाता है इसे भगवान महावीर द्वारा कथित प्रसन्नचंद्र राजर्षि के कथानक से समझा जा सकता है। 278. क्या तिर्यंच के शुभ अध्यवसाय होते हैं? उ. हां, तिर्यंच के भी शुभ अध्यवसाय हो सकते हैं। केवल पंचेन्द्रिय तिर्यंच ही नहीं एकेन्द्रिय जीवों में भी शुभ अध्यवसाय होते हैं। अनेक वनस्पतिकाय के जीव मरकर मनुष्य गति प्राप्त करके मोक्ष में जाते हैं। तिर्यंच पंचेन्द्रिय 'आत्मा के भी निमित्त मिलने पर शुभ अध्यवसाय जाग्रत् होते जाते हैं। जिसका आगम प्रसिद्ध उदाहरण है(1) भगवान महावीर का अनन्य श्रावक नन्द मणियार का। (2) भगवान द्वारा प्रतिबोध मिलने से और पूर्वजन्म की स्मृति होने से क्रोध-मूर्ति चण्डकौशिक क्षमामूर्ति बन गया। 279. कर्म बंध के दो प्रकार कौनसे हैं? उ. द्रव्य बंध और भाव बंध। 280. द्रव्य बंध किसे कहते हैं? उ. कर्म पुद्गलों का आत्मप्रदेशों से सम्बन्ध होना द्रव्य बंध कहलाता है। द्रव्य बंध दो प्रकार का होता है—पुद्गल का पुद्गल के साथ और पुद्गल का आत्म प्रदेशों के साथ। जैसे घी और आटे का बंध पुद्गल का पुद्गल के साथ बंध है। कर्म और जीव का बंध पुद्गल का आत्म प्रदेशों के साथ है। 64 कर्म-दर्शन
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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