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________________ 257. अपवर्तनाकरण किसे कहते हैं? उ. कर्मों की पूर्वबद्ध स्थिति और अनुभाग में कमी करने वाला जीव का वीर्य विशेष अपवर्तनाकरण है। 258. उदीरणाकरण किसे कहते हैं? उ. जो कर्मदलिक उदय प्राप्त नहीं है, उन्हें विशेष प्रयत्न से उदयवलिका में प्रवेश कराने वाला जीव का वीर्य विशेष उदीरणा करण है। 259. उपशमनाकरण किसे कहते हैं? उ. जिस वीर्य विशेष के द्वारा कर्मदलिक उदय, उदीरणा, निधत्ति और निकाचना के अयोग्य हो जाए, वह उपशमनाकरण कहते हैं। अर्थात् कर्मदलिकों के सत्ता में बने रहने पर भी उनके प्रभाव को रोक देना उपशमनाकरण है। 260. निधतिकरण किसे कहते हैं? उ. जिस वीर्य विशेष से कर्म उद्वर्तना और अपवर्तना करण को छोड़कर शेष करणों के अयोग्य हो जाये, वह वीर्य विशेष निधति-करण है। 261. निकाचनाकरण किसे कहते हैं? उ. जो कर्मदलिक सब प्रकार के करणों के अयोग्य हो और जिस रूप में, जिस स्थिति में, जिस रस में या जितने प्रदेशों के परिमाण के रूप में बंधा हो, उसी रूप में जो अवश्य ही भोगा जाता है, जिसमें परिवर्तन की कोई गुंजाइश नहीं रहती, जो भोगने से ही छूट सकता है, अन्यथा नहीं। अध्यवसायों के कारण कर्मों की ऐसी गाढ़ रूपता पैदा करना निकाचनाकरण है। 58 कर्म-दर्शन
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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