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________________ शीत । । । । । । । । । । वेदनीय 22. 13. पिपासा वेदनीय वेदनीय ऊष्ण वेदनीय दंशमशक वेदनीय चर्या वेदनीय शय्या वेदनीय 19. वध 20. रोग वेदनीय 21. तृणस्पर्श वेदनीय जल्ल वेदनीय 252. केवली होने के पश्चात् कौनसे कर्म शेष रहते हैं? उ. केवली होने के पश्चात् भवोपग्राही (जीवन धारण के हेतुभूत) कर्म शेष रहते हैं, तब तक वह इस संसार में रहते हैं। इसकी काल-मर्यादा जघन्यत: अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टतः देशोन (नौ वर्ष कम) करोड़ पूर्व की है। 253. कर्मशास्त्र में करण किसे कहा गया है और वे कितने हैं? __उ. जो जीव अपने वीर्य विशेष के द्वारा कर्मों में विविध प्रकार की स्थितियों का निर्माण करता है उन्हें कर्मशास्त्र में करण कहा गया है। वे आठ हैं1. बंधनकरण 2. संक्रमणकरण 3. उद्वर्तनाकरण 4. अपवर्तनाकरण 5. उदीरणाकरण 6. उपशमनाकरण 7. निधतिकरण 8. निकाचनाकरण 254. बंधनकरण किसे कहते हैं? __उ. आत्म प्रदेशों के साथ कर्मों को क्षीर-नीर की तरह मिलाने वाला जीव का वीर्य विशेष बन्धनकरण है। 255. संक्रमणकरण किसे कहते हैं? उ. जिस करण के द्वारा पूर्व में बंधे हुए कर्म की प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और प्रदेश किसी सजातीय प्रकृति के रूप में रूपान्तरित हो जाते हैं उस करण को संक्रमण-करण कहते हैं। 256. उद्वर्तनाकरण किसे कहते हैं? उ. कर्मों की पूर्वबद्ध स्थिति और अनुभाग में वृद्धि करने वाला जीव का वीर्य विशेष उद्वर्तनाकरण है। कर्म-दर्शन 57
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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