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________________ 193. औदयिक भाव किसे कहते हैं? उ. कर्मों के उदय से होने वाली आत्मा की अवस्था को औदयिक भाव कहते 194. आठ कर्मों में से कितने कर्मों का उदय होता है? उ. उदय आठों कर्म प्रकृतियों का होता है। 195. उदय के कितने प्रकार हैं? उ. * जीव के उदय-निष्पन्न के तैंतीस प्रकार हैं चार गति, छह काय, छह लेश्या, चार कषाय, तीन वेद, मिथ्यात्व, अविरति, अमनस्कता, अज्ञानित्व, आहारता, संयोगिता, संसारता, असिद्धता, अकेवलित्व, छद्मस्थता। * अजीवोदय निष्पन्न के तीस प्रकार हैंपांच शरीर, पांच शरीर के प्रयोग में परिणत पुद्गल द्रव्य, पांच वर्ण, दो गंध, पांच रस और आठ स्पर्श। ये वैसे जीवाश्रित होते हैं। 196. उदय के तैंतीस बोलों में सावध कितने? निरवद्य कितने? उ. * सावद्य-4 कषाय, तीन वेद, 3 अशुभ लेश्या, मिथ्यात्व, अव्रत—ये ____ 12 बोल सावध हैं। * 3 शुभ लेश्या-निरवद्य हैं। * आहारता, संयोगिता-ये 2 बोल सावद्य-निरवद्य दोनों हैं। * 4 गति, 6 काय, अमनस्कता, अज्ञानता, संसारता, असिद्धता, अकेवलित्व, छद्मस्थता-ये सोलह बोल सावद्य-निरवद्य दोनों हैं। 197. उदय के तैंतीस बोल किस-किस कर्म के उदय से हैं? उ. * 4 गति, 6 काय, 3 शुभ लेश्या—ये 13 बोल नाम कर्म के उदय से * 4 कषाय, 3 वेद, 3 अशुभ लेश्या, मिथ्यात्व, अव्रत-ये बारह बोल मोहनीय कर्म के उदय से। * अमनस्कता, अज्ञानता—ये दो बोल ज्ञानावरणीय कर्म के उदय से हैं। * आहारता, संयोगिता—ये दो बोल नामकर्म और मोहनीय कर्म के उदय से। * अकेवलित्व, छद्मस्थता-ये दो बोल ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय और अन्तराय-इन तीन कर्मों के उदय से। * संसारता, असिद्धता—ये दो बोल वेदनीय, नाम, गोत्र और आयुष्य इन 4 कर्मों के उदय से। 44 कर्म-दर्शन 02082492 908223
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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