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________________ 185. मोह कर्म के बाद आयुष्य कर्म को रखने का हेतु क्या है ? उ. मोह व्याकुल जीव आरम्भ आदि करके आयु का बंध करता ही है। मोह कर्म जिनका क्षय हो गया उनके आयु का बंध होता ही नहीं है। मोह कर्म की तीव्रता, मंदता के आधार पर भावों में निर्मलता, निकृष्टता आती है। आयु का बंध भी भावों की हीनता, उत्कृष्टता के आधार पर होता है। 186. आयुष्य कर्म के बाद नाम कर्म क्यों ? उ. जिसके आयु का उदय होगा उसे गति, स्थिति आदि नाम कर्म की प्रकृतियों को भोगना ही पड़ता है अतः आयुष्य के बाद नाम कर्म को रखा गया है। 187. गोत्र कर्म का स्थान नाम कर्म के बाद क्यों ? उ. गति आदि नाम कर्म के उदय वाले जीव को उच्च व नीच गोत्र के विपाक को भोगना पड़ता है इसलिए नाम कर्म के बाद गोत्र कर्म को रखा गया है। 188. उ. अन्तराय कर्म का स्थान गोत्र कर्म के बाद क्यों ? उच्च गोत्र कर्म वाले जीवों के दानान्तराय, लाभान्तराय आदि का ज्यादा क्षयोपशम होता है तथा नीच गोत्र वाले जीवों के दानान्तराय आदि का उदय अधिक रहता है। इसी आशय को बताने के लिए गोत्र के बाद अन्तराय कर्म को स्थान दिया गया है। वैसे अन्तराय कर्म का क्षयोपशम सभी कर्मों के लिए जुड़ा हुआ है । अन्तराय कर्म घाती होते हुए भी देशघाती है सर्वघाती नहीं । 189. मोक्ष प्राप्ति के कितने चरण हैं? उ. मोक्ष प्राप्ति के दो चरण हैं (1) नये कर्मों का संचय न होने देना । (2) पुराने कर्मों को पूरा करना । अर्थात् संवर प्रथम चरण है और निर्जरा दूसरा चरण । 190. कर्मों के संयोग या वियोग से होने वाली जीव की अवस्था विशेष का नाम क्या है ? भाव । उ. 191. भाव के कितने प्रकार हैं? उ. पांच —— औदयिक, औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक और पारिणामिक । 192. कर्मों का उदय, क्षय, क्षयोपशम और उपशम किसके आश्रित होता है ? उ. कर्मों का उदय, क्षय, क्षयोपशम और उपशम द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के आश्रित होता है। कर्म-दर्शन 43
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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