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________________ 148. वीतराग कौन होता है? उ. जिसके राग-द्वेष (मोहकर्म) सर्वथा उपशम या क्षय हो जाते हैं वह वीतराग होता है। अन्तिम चार गुणस्थान वीतराग के हैं। अकषायी वीतराग का पर्यायवाची शब्द है। 11वें व 12वें गुणस्थान वाले छद्मस्थ वीतराग एवं 13वें, 14वें गुणस्थान वाले केवली वीतराग होते हैं। 149. क्या छद्मस्थ अकषायी होता है? उ. छद्मस्थ सकषायी अकषायी दोनों होते हैं। जब तक केवलज्ञान नहीं हो जाता तब तक जीव छद्मस्थ कहलाता है। पहले से दसवें गुणस्थान वाले जीव सकषायी छद्मस्थ एवं ग्यारहवें तथा बारहवें गुणस्थान वाले अकषायी छद्मस्थ कहलाते हैं। 150. सात कर्मों का बंध नौवें गुणस्थान तक निरन्तर होता है, क्या इन सात कर्मों की सभी उत्तरप्रकृतियों का बंध भी निरन्तर होता है? उ. सभी उत्तरप्रकृतियों का बंध एक साथ नहीं होता। शुभ प्रवृत्ति से अशुभ एवं अशुभ प्रवृत्ति से शुभ कर्म का बंध नहीं होता। जो विरोधी स्वभाव वाली प्रकृतियां हैं उनका भी एक साथ एक समय में बंध नहीं होता। गतिनाम कर्म की (आयुष्य कर्म की) किसी समय किसी एक प्रकृति का ही बंध हो सकता है। त्रस दशक के साथ स्थावर दशक का बंध नहीं होता। 151. कर्म वर्गणा का बंध होता है, वे एक कर्म से संबंधित होती हैं, या आठों कर्मों से? उ. कर्म वर्गणा प्रति समय जीव के बंधती है, उनका क्रम इस प्रकार है सामान्यतया आयुष्य कर्म को छोड़कर सात कर्मों से वे वर्गणाएं सम्बन्धित हो जाती हैं। जीवन में एक बार आयुष्य कर्म बंधता है, उस समय में बंधने वाली वर्गणाएं आठों कर्मों से सम्बन्धित हो जाती हैं। 152. बंधने वाली कर्म वर्गणाएं क्या आठों कर्मों में समान रूप में विभक्त होती हैं या न्यूनाधिक? उ. जिस कर्म की स्थिति ज्यादा हो उसके हिस्से में कर्म पुद्गल ज्यादा आयेंगे किन्तु वेदनीय कर्म कम स्थिति के होंगे, फिर भी उसके हिस्से में कर्म प्रदेश ज्यादा आयेंगे। आयुष्य कर्म एक बार बंधता है, उस समय में भी सबसे थोड़े कर्म पुद्गल उसके साथ जुड़ते हैं। उससे विशेषाधिक नाम व गोत्र दोनों के परस्पर में बराबर बंधते हैं। इनसे विशेषाधिक ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, अन्तराय कर्म परस्पर में तुल्य बंधते हैं। इनसे विशेषाधिक मोहकर्म के साथ पुद्गल बंधते हैं। इनसे विशेषाधिक वेदनीय कर्म के हिस्से में आते हैं। कर्म-दर्शन 37
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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