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________________ 114. जीव कर्मों का उपादान कारण है या प्रेरक कारण? उ. जीव के मिथ्यात्व आदि भावों द्वारा जो अजीव पुद्गल द्रव्यात्मा के साथ संसर्ग में आ उसे बंधनबद्ध करते हैं, वे कर्म कहलाते हैं। जीव के मिथ्यात्व आदि भाव आश्रव हैं, कर्म उनके फल। आश्रव कारण है और कर्म कार्य। जीव ही अपने भावों से कर्मों को ग्रहण करता है, इसलिए वह कर्मों का उपादान कारण नहीं अपितु प्रेरक कारण है। 115. आत्मा और शरीर एक है या दो? उ. चेतन शरीर का निर्माता है। शरीर आत्मा का अधिष्ठान है। एक दसरे की क्रिया-प्रतिक्रिया का प्रभाव दोनों पर है। अतः आत्मा और शरीर एक नहीं दो हैं। 116. जीव चेतन है, पुद्गल जड़ है इन दोनों में परस्पर सीधा संबंध नहीं है। संबंध के लिए जीव किसका सहारा लेता है? उ. लेश्या का। 117. आत्मा बोलती है या पुद्गल? उ. न अकेली आत्मा बोलती है न अकेला पुद्गल। जब दोनों का योग होता है तब एक प्राण-शक्ति पैदा होती है। वह प्राण-शक्ति ही बोलती है, सोचती है, श्वास लेती है, खाना खाती है। 118. कर्म और आत्मा में बलवान कौन है? उ. अज्ञानी के लिए कर्म बलवान होते हैं और ज्ञानी के लिए आत्मा बलवान होती है। 119. कर्म परमाणु आत्मा के साथ किस प्रकार एकीभूत हो जाते हैं? उ. दूध और पानी, अग्नि और लोहा, मिट्टी और सोना, तिल और तेल की तरह कर्म परमाणु आत्मा के साथ एकीभूत हो जाते हैं। 120. आत्मा कर्म परमाणुओं को कैसे आकृष्ट करता है? उ. जिस प्रकार गर्म घी में डाली हुई पुड़ी घी को खींचती है, चुम्बक लोहे को अपनी ओर आकृष्ट करता है, कपड़ा पानी को सोख लेता है, गुरुत्वाकर्षण से धरती हर वस्तु को नीचे की ओर खींच लेती है उसी प्रकार राग-द्वेष के परिणामों से युक्त जीव कर्म पद्गलों को अपनी ओर आकृष्ट करता है। ये कर्म पुद्गल आत्मा के प्रकाश को आच्छादित कर देते हैं पर आत्म-शक्ति को समूल नष्ट नहीं करते। 13 44 कर्म-दर्शन 31
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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