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________________ 110. शास्त्रों में राग के कितने प्रकार बताये गये हैं? उ. शास्त्रों में राग के तीन प्रकार बताये गये हैं— 1. स्नेह राग', 2. काम राग 2, 3. दृष्टि राग । 111. -द्वेष से कर्मबंध कैसे होता है ? उ. राग हिमपात है जबकि द्वेष दावानल है। दावानल से वृक्षों की हानि होती है तो हिमपात से भी कम नहीं होती। अग्नि जलाती है तो बर्फ भी दाह पैदा कर देती है । अन्तर इतना है कि एक गरम और एक ठण्डी । द्वेष से व्यक्ति जलता है तो राग भी व्यक्ति को जला देती है । द्वेषी को देखने से खून उबलने लगता है तो राग के विरह में हृदय जलता है। राग-द्वेष दोनों ही - विकास में बाधक हैं। आत्म राग बिजली दो प्रकार की होती है। एक अपनी ओर खींचती है तो दूसरी झटका देकर फेंक देती है। दोनों ही प्रकार की बिजली मारक होती है। दोनों का दुष्परिणाम मनुष्य को भोगना पड़ता है। दोनों का स्वरूप घातक है। इसी प्रकार राग अपनी ओर खींचता है— द्वेष झटका देकर दूर फेंकता है। अतः दोनों कर्मबंध के कारण हैं। 112. कर्म की कर्ता आत्मा है या कर्म ? उ. कर्म की कर्ता आत्मा है। कर्म का मूल कषाय है। कषाय आत्मा का ही एक पर्याय है। 113. सिद्ध करें कि जीव कर्मों का कर्ता है ? - उ. संसारी जीव अनन्तकाल से कर्मबद्ध है। उन कर्मों की उदय, उपशम आदि अवस्थाएं होती हैं, जिससे जीव में नाना प्रकार के भाव परिणाम उत्पन्न होते हैं। जैसे मिथ्यात्व, अव्रत, प्रमाद आदि । जब जीव कर्मों के उदय से उत्पन्न मिथ्यात्वादि भावों में प्रवर्तन करता है, तब पुनः नये कर्मों का बंध होता है। जब इनमें प्रवर्तन नहीं करता तब कर्म नहीं होते, अर्थात् आत्मा कर्म करता है तभी कर्म होते हैं, नहीं करता तब कर्म नहीं होते। इससे आत्मा कर्मों का कर्ता सिद्ध होता है। भगवती सूत्र में कहा गया है — " अकर्मा के कर्म ग्रहण और बंध नहीं होता। पूर्व कर्म से बंधा हुआ जीव ही नये कर्मों का ग्रहण और बंध करता है। अगर ऐसा न हो तो मुक्त जीव भी कर्म से बंधे बिना न रहे। इससे संसारी जीव कर्मों का कर्ता सिद्ध होता है। 1. कथा नं. 4 2. कथा नं. 5 30 कर्म-दर्शन
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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