SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 280
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (33) संयमासंयम नंदिनी पिता सावत्थी नगरी में रहने वाला एक ऋद्धिसम्पन्न गाथापति था। नंदिनी पिता के पास बारह कोटि सोनैये तथा दस-दस हजार गायों के चार गोकुल थे। भगवान महावीर का वहाँ पदार्पण हुआ। नंदिनी पिता ने प्रबुद्ध होकर श्रावक के बारह-व्रत स्वीकार किये। पन्द्रह वर्ष तक श्रावक के व्रतों का निरतिधार पालन करके अपने ज्येष्ठ पुत्र को घर का भार सौंप स्वयं सांसारिक कार्यों से अलग हो गया। श्रावक की ग्यारह प्रतिमाएं धारण करके सभी तरह से आत्माभिमुख होकर जीवन यापन करने लगा। अन्तिम प्रतिमा में जब उसे अपना तब क्षीणप्रायः लगने लगा, तब वर्धमान भावों से अनशन स्वीकार कर लिया। उसे एक महीने का अनशन आया। अन्त में अनशनपूर्वक समाधिमरण प्राप्त करके प्रथम स्वर्ग के अरुणाभ विमान में पैदा हुआ। वहाँ से महाविदेह में होकर मोक्ष को प्राप्त करेगा। उपासक दशा-9 (34) बाल तप 'तामली' ताम्रलिप्ति नगरी में रहने वाला एक ऋद्धिसम्पन्न गाथापति था। भरा-पूरा परिवार, नगर में प्रतिष्ठा और सम्मान—कुल मिलाकर वह अपना सुखी और सफल जीवन व्यतीत कर रहा था। एक दिन मध्यरात्रि में उसके चिंतन ने मोड़ लिया। उसने सोचा–पूर्वजन्म में समाचरित शुभ कार्यों के साथ बंधने वाले पुण्यों की परिणतिस्वरूप बल, वैभव सम्पत्ति आदि सब कुछ यहाँ मिले हैं। मेरे लिए यह समुचित होगा कि मैं इनमें आसक्त न होकर इस जन्म में और भी अधिक साधना करूं। यों विचारकर अपने ज्येष्ठ पुत्र को घर का सारा भार सौंपकर स्वयं तापसी दीक्षा स्वीकार कर ली। गेरुए वस्त्र, पैरों में खड़ाऊ, हाथ में कमण्डलु और केशलुंचन करके प्रणामा प्रव्रज्या स्वीकार की और वन की ओर चला गया। बेले-बेले की तपस्या, सूर्य के सम्मुख आतापना लेना आदि घोर तप प्रारम्भ किया, जिसमें कठिनतम कार्य कर्म-दर्शन 279
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy