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________________ मद्य (शराब) के साथ उस मांस को बहुत शोक से खाकर अपना दोहद पूरा किया। सवा नौ महीने बाद उसके एक पुत्र पैदा हुआ। पुत्र ने पैदा होते ही इतनी जोर से ध्वनि की, जिसे सुनकर अनेक गौ आदि पशु संत्रस्त होकर इधर-उधर दौड़ने लगे। इस कारण इसका नाम गौत्रासक (गोत्रासिया) पड़ गया। वह बड़ा होकर बहुत ही क्रूरकर्मी, अधर्मिष्ठ बना। नागरिक संत्रस्त हो उठे। राजा ने सोचा – यदि इसके कंधों पर कुछ जिम्मेदारी डाली जाए तो नगर के उत्पात कुछ कम हो जायेंगे। यह सोचकर राजा ने उसको अपना सेनापति बना दिया। तलवार हाथ लगने पर बंदर कब चंचल नहीं बनता? उसकी नृशंसता और बढ़ गयी। रात को प्रतिदिन तलवार लेकर गौशाला में जाता तथा पशुओं को मारकर मांस खाता । इस प्रकार पाप-कर्म करते हुए उसने दुस्सह कर्मों का बंध किया और मरकर दूसरी नरक में गया। दूसरी नरक से निकलकर विजयमित्र सेठ के यहाँ सुभद्रा का अंगजात बना, पर माता ने उसे उकुरड़ी पर डलवा दिया। कुछ समय बाद उसे अपने पास पुनः मंगवा लिया। पर उसका नाम 'उज्झितकुमार' पड़ गया। बड़ा होकर उज्झितकुमार बुरी तरह से दुर्व्यसनों के चंगुल में फंस गया। इसी नगर में 'कामध्वजा' नाम की वेश्या रहती थी। उसके यहाँ कामान्ध बना रहने लगा। यद्यपि वह वेश्या राजवेश्या थी । राजा के द्वारा प्रतिदिन उसे एक हजार स्वर्णमुद्राएं मिलती थीं, पर प्रेम अंधा होता है। वह भी उज्झितकुमार पर पूर्णतया आसक्त थी। संयोग ऐसा बना कि राजा की रानी के योनी - शूल की वेदना हो गई, इसलिए राजा ने उसे छोड़कर इस वेश्या को अपने अन्तःपुर में रख लिया तथा उसे अपनी उपपत्नी बना लिया। उज्झितकुमार देखता ही रहा । वेश्या पर आसक्त बना वह मौका पाकर राजमहलों में पहुंचकर वेश्या के साथ काम-क्रीड़ा करने लगा। राजा भी अकस्मात् उसी समय वहाँ पहुंचा। उसे वहाँ देखकर उत्तेजित हो उठा और तत्क्षण पकड़ने का आदेश दिया। उसे पकड़कर उसके नाक-कान कटवा दिये और बुरा हाल करके नगर में घुमाने लगे । राजपुरुष उसके शरीर के छोटे-छोटे टुकड़े करके उसको खिलाते, ऊपर से बुरी तरह से मारते हुए शहर के बाहर ले जा रहे थे। उसकी यह दुरवस्था देखकर गौतम स्वामी ने नगर के बाहर बगीचे में विराजमान भगवान् महावीर को सारी बात सुनाकर पूछा- 'भगवन् इसने ऐसे कौनसे क्रूर कर्म किये थे?' तब प्रभु ने पूर्वजन्म और इस जन्म में समाचरित — इसकी पाप कहानी सुनाई तथा यह भी फरमाया- - अब केवल तीन प्रहर ही यह जीवित रहेगा। शूली पर से यह मरकर प्रथमनरक में जायेगा । वहाँ से संसार में अनेक चक्कर लगायेगा । विपाक सूत्र, अध्ययन 2 278 कर्म-दर्शन -
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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