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________________ (25) दर्शन मोहनीय आचार्य विश्वभद्र के संघ में 500 साधु थे। आचार्य ने पांच प्रमुख शिष्यों को शिक्षक नियुक्त किया। एक-एक शिक्षक मुनि को सौ-सौ साधु दिये गये। आचार्य के उन शिक्षक शिष्यों में पांचवें मुनि थे—मणिभद्र, जो प्रखर व्याख्याता और बौद्धिक प्रतिभा के धनी थे। उनका बाह्य और आभ्यन्तर दोनों व्यक्तित्व सुन्दर था। आचार्यश्री के पांच प्रमुख शिष्यों में मुनि मणिभद्र का विशेष प्रभाव था। लोगों की यह आम धारणा थी कि आचार्यश्री के भावी पट्टधारी यहीं होंगे। आचार्यश्री भी इन्हें अधिक महत्त्व देते थे। संघ में कुछ महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने होते तो आचार्यश्री मणिभद्र मुनि को पूछे बिना नहीं लेते। आचार्यश्री ने युवाचार्य नियुक्ति में मणिभद्र मुनि का नाम न लेकर उस साधु का नाम लिया जो चारित्र स्थविर और आगम स्थविर बन चुके थे। पूरे संघ में हर्ष की लहर दौड़ गई। इसका मणिभद्र मुनि को गहरा आघात लगा। विचारों में उतारचढ़ाव आने लगा। भीतर-भीतर कुछ विद्रोह की भावना जगने लगी। वहाँ एक प्रसिद्ध आश्रम था। उस आश्रम के कुलपति को मणिभद्र की मन:स्थिति का पता लगा। उन दिनों मणिभद्र मुनि का विहार क्षेत्र आश्रम के आसपास ही था। कुलपति उनके व्यक्तित्व एवं विद्वत्ता से प्रभावित था। कुलपति ने एक विश्वस्त व्यक्ति को मणिभद्र मुनि के पास भेजा और कुलपति पद प्रदान करने का प्रस्ताव रखा। मणिभद्र मुनि की महत्त्वाकांक्षा ने उनको साधना से विचलित कर दिया और वे आश्रम के सदस्य बन गये। धार्मिक क्षेत्र में भारी हलचल मची। धर्मसंघ को गहरा धक्का लगा। पुन: मणिभद्र मुनि को संघ में लाने का प्रयत्न किया, किन्तु असफल रहा। छठे महीने में कुलपति ने मणिभद्र को कुलपति बना दिया। कुछ चामत्कारिक विद्याएं सीखा दीं। मणिभद्र बुद्धिमान तो थे ही, परिव्राजक मत का अच्छा प्रचार करने लगे। स्वयं के साथ अनेक साधुओं को भी ले गये थे। उनसे प्रभावित श्रावक भी परिव्राजक मतानुयायी बन गये। कुछ लोग इनके चमत्कारों के प्रभाव में आ गये। प्रतिदिन व्याख्यान में कभी मिश्री आकाश से मंगाते और प्रसाद के रूप में बांट देते। कभी केशर, कभी कुंकुम मंगवाते और श्रोताओं पर बिखेर देते। 4 कर्म-दर्शन 265
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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