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________________ दमकने लगा। श्रीपाल की माता भी आ गई। वह अपने पुत्र और पुत्रवधू को देखकर बहुत हर्षित हुई। इसके बाद श्रीपाल विदेश-यात्रा को चला गया। वहाँ उसने मदनसेना, रैनमंजूषा, मदनमंजूषा, गुणसुन्दरी, त्रैलोक्यसुन्दरी, शृंगार-सुन्दरी, मदनमंजरी आदि . सात राजकन्याओं से और विवाह किया, अत्यधिक यश-सम्मान, ऋद्धि-समृद्धि प्राप्त की। उसने चतुरंगिणी सेना भी तैयार कर ली। श्रीपाल ने विदेश यात्रा सम्पन्न कर मालवदेश की राजधानी उज्जयिनी के बाहर पड़ाव डाला और घर जाकर माता और पत्नी से मिला। साधारण बात-चीत के बाद श्रीपाल कुमार माता को कन्धे और पत्नी को हाथ पर बैठाकर हार के प्रभाव से आकाश मार्ग द्वारा अपने शिविर में आ पहुंचा। वहाँ वह अपनी माता को सिंहासन पर बैठाकर स्वयं उनके सामने बैठ गया। श्रीपाल की सातों रानियों ने आकर माता व मैनासुन्दरी के चरण स्पर्श किये। मां ने सबको आशीर्वाद दिया और मैनासुन्दरी ने मधुर वचनों से सबका स्वागत किया। अनन्तर श्रीपाल ने माता को आद्योपांत पूर्व वृत्तांत सुनाया। अब श्रीपाल ने मैनासुन्दरी से कहा—प्रिये! सिद्धचक्र के प्रताप से उज्जयिनी को हथिया लेना मेरे लिये मुश्किल नहीं है। क्योंकि तुम्हारे पिता ने अभिमानवश जैनधर्म का अपमान किया था, न केवल धर्म का ही अपमान किया था बल्कि धर्म की वस्तुस्थिति बताने पर तुम्हारा जीवन भी दुःखमय बना दिया था। अब मैं तुम्हारे पिता को उनकी भूल का एहसास कराना चाहता हूँ कि उन्होंने क्रोधावेश में आकर कैसा अनुचित कार्य किया था। अब तुम मुझे यह बतलाओ कि उन्हें किस रूप में और किस प्रकार यहाँ उपस्थित होने को बाध्य किया जाए? ___नासुन्दरी ने कहा—नाथ! मेरी समझ में, पिताजी का अभिमान दूर करना आवश्यक है। इसके लिए उन्हें कंधे पर कुल्हाड़ी रख कर नम्रतापूर्वक यहाँ उपस्थित होने को कहना चाहिए। मैनासुन्दरी की बात सुन उसी समय उन्होंने एक दूत द्वारा मालवराज को यह संदेश भेज दिया। साथ में यह भी कहला दिया कि यदि उन्हें यह स्वीकार न हो तो युद्ध की तैयारी करे। ___ यथा समय दूत पहुँचा और श्रीपाल का संदेशा सुना दिया। दूत की बात सुनते ही प्रजापाल के शरीर में मानो आग लग गई। प्रजापाल ने पहले ही सुन लिया था कि शत्रु बड़ा प्रबल है। मंत्रियों से सलाह करने पर उन्होंने कहा—महाराज! क्रोध करने का अवसर नहीं है। शत्रुता और मित्रता समान वाले से ही करना उचित है। 258 कर्म-दर्शन
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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