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________________ तापस का मासखमण तप का पारणा तीन-तीन बार टल जाने से वे कुपित हो गए। तीव्र आवेश के कारण अग्निशर्मा ने गुणसेन के प्रति द्वेष की गांठ बांध ली। राजा गुणसेन से वैर का बदला लेने हेतु अग्निशर्मा तापस ने गुणसेन राजा को मारने का निदान किया। इस प्रकार प्रत्येक जन्म में द्वेषवृत्ति से निदान करके अग्निशर्मा का जीव गुणसेन के जीव को मारता रहा। मुनि-हत्या के महापाप का भार ढोता हुआ अग्निशर्मा का जीव अनेक जन्मों तक दुर्गति में परिभ्रमण करता रहा किन्तु गुणसेन का जीव प्रत्येक जन्म में क्षमा, समता व संयम रखकर अग्निशर्मा के द्वारा दिये गए उपसर्गों को सहता रहा। इस उत्कृष्ट साधना के फलस्वरूप नौवें भव में गुणसेन का जीव समरादित्य के रूप में मोक्ष को प्राप्त कर लेता है। यह नौ जन्मों की तीव्र द्वेष परम्परा का फल है। नंद नामक नाविक लोगों को गंगा नदी के आर-पार पहुंचाता था। एक बार धर्मरुचि अनगार नाव में बैठकर गए। तर आने पर अन्यान्य लोग नाविक को भृति (मूल्य) देकर चले गए। अनगार बिना मूल्य दिये जाने लगे। नाविक ने उन्हें रोक लिया। उस गांव की भिक्षा-वेला अतिक्रांत हो गई। फिर भी नाविक ने उन्हें मुक्त नहीं किया। उस तप्त बालू में वे मुनि भूखे-प्यासे खड़े थे। वे कुपित हो गये। मुनि दृष्टिविषलब्धि से सम्पन्न थे। नाविक की ओर दृष्टि जाते ही वह जलकर भस्म हो गया और मरकर एक सभा में छिपकली बना। संयोग से साधु भी विहार करते-करते उस गांव में पहुंचे। गांव में भिक्षा ग्रहण कर उस सभा में भोजन करने बैठे। छिपकली उसी कमरे की भित्ति पर थी। उसकी दृष्टि मुनि पर पड़ी। वह क्रोधारुग्ण हो गई। जब मुनि भोजन करने लगे, तब वह ऊपर से कचरा गिराने लगी। मुनि अन्यत्र जाकर बैठे। वहाँ भी उसने वैसा ही किया। मुनि स्थान बदलते रहे और वह भी वहाँ जाती रही। मुनि को भोजन करने का स्थान नहीं मिला। मुनि ने छिपकली की ओर देखा और सोचा-'अरे यह कौन है?' उन्हें याद आया यह तो पापी नाविक नंद है। मुनि ने अपनी दृष्टि से उसको जला डाला। वह छिपकली मरकर मृतगंगा में हंस रूप में उत्पन्न हुई। एक बार मुनि माघ मास में सार्थ के साथ प्रात:काल में उधर से निकले। हंस ने मुनि को देखा। वह अपने पंखों में पानी भरकर मुनि को सींचने लगा। वहाँ भी वह हंस जलकर सिंहयोनि में अंजनक पर्वत पर जन्मा। एक बार मुनि विचरण करते हुए वहाँ पधारे। मुनि को देखते ही सिंह उठा और पकड़ लिया। मुनि ने उसे जला डाला। वहाँ से मरकर वह 234 कर्म-दर्शन
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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