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________________ घाति कर्म कहते हैं। ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अंतराय ये चार कर्म ‘घाति कर्म' कहलाते हैं। 40. घाति कर्मों में देशघाती कितने हैं और सर्वघाती कितने? उ. वैसे चारों कर्म देशघाती हैं। सर्वघाती कोई कर्म नहीं है। आत्मगुणों की सर्वथा घात कभी नहीं होती। आंशिक उज्ज्वलता अभवी जीवों के भी होती है। चारों घाति कर्मों का क्षयोपशम न्यूनाधिक रूप में सभी छद्मस्थ जीवों में रहता ही है, अत: कर्म देशघाती ही होते हैं। घाति कर्मों की कुछ प्रकृतियां देशघाती एवं कुछ सर्वघाती कही गई हैं। 41. अघाति कर्म किसे कहते हैं? उ. जो कर्म आत्मगुणों की घात नहीं करते, उन्हें हानि नहीं पहुंचाते, केवल जिनका शुभ-अशुभ रूप में भोग होता है, आत्मगुणों के साथ जिनका सीधा सम्बन्ध नहीं होता वे अघाति कर्म हैं। वेदनीय, नाम, गोत्र और आयुष्य ये चार 'अघाति' कर्म हैं। 42. चार अघाति कर्म कब क्षीण होते हैं? उ. चार अघाति कर्म चौदहवें गुणस्थान के अन्तिम समय तक बने रहते हैं। चौदहवें गुणस्थान को पार करना, चार अघाति कर्मों का क्षीण होना और मुक्त होना ये सब काम एक साथ एक समय में घटित हो जाते हैं। 43. आठ कर्मों में पाप रूप कितने व पुण्य रूप कितने कर्म हैं? उ. आठ कर्मों में ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय ये चार कर्म एकान्त पाप रूप हैं। शेष चारों कर्म पाप व पुण्य दोनों रूप हैं। इन चारों के दो-दो भेद हैं1. वेदनीय-सात वेदनीय और असात वेदनीय। 2. आयुष्य-शुभ आयुष्य और अशुभ आयुष्य। 3. नाम-शुभ नाम और अशुभ नाम। 4. गोत्र—उच्च गोत्र और नीच गोत्र। इन चारों कर्मों के प्रथम भेद सात वेदनीय ; शुभ आयुष्य, शुभ नाम, उच्च गोत्र पुण्य स्वरूप हैं। असात वेदनीय ; अशुभ आयुष्य, अशुभ नाम, नीच गोत्र पाप स्वरूप हैं। 44. आठ कर्मों में बंधकारक कर्म कितने हैं? उ. दो-मोहनीय कर्म और नाम कर्म। मोहनीय कर्म से अशुभ व नाम कर्म से 20 कर्म-दर्शन
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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