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________________ 34. सामान्य रूप से जीव के काम में आने वाली पुद्गल वर्गणाएं कितने प्रकार की होती हैं ? उ. जीव के काम में आने वाली पुद्गल वर्गणाएं आठ प्रकार की हैं जिनका उपयोग जीव करता है। उनके नाम हैं— (1) औदारिक वर्गणा, (2) वैक्रिय वर्गणा, (3) आहारक वर्गणा (4) तेजस वर्गणा, (5) कार्मण वर्गणा, (6) मन वर्गणा, (7) वचन वर्गणा, (8) श्वासोच्छ्वास वर्गणा । 35. ये वर्गणाएं कितने स्पर्श वाली हैं? उ. आठ वर्गणाओं में औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तेजस वर्गणाएं आठ स्पर्श वाली हैं। कार्मण, मन व वचन वर्गणा चतुःस्पर्शी होती हैं। श्वासोच्छ्वास वर्गणा दोनों प्रकार की होती हैं । 36. निर्जरित कर्म वर्गणा चतुःस्पर्शी ही रहती है या अष्टस्पर्शी भी हो सकती है ? उ. निर्जरण के बाद कर्म वर्गणा, कर्म वर्गणा नहीं रहती वे केवल पुद्गल रह जाते हैं। ये चतुःस्पर्शी रह कर कभी भाषा, मन आदि रूप में प्रयुक्त हो सकते हैं, आहारक, तेजस, वैक्रिय आदि अष्टस्पर्शी वर्गणा के रूप में भी परिणत हो सकते हैं। स्कन्ध से अलग हैं। परमाणु रूप में द्विस्पर्शी भी बन सकते हैं। पुनः कर्म वर्गणा के रूप में भी परिणत हो सकते हैं। 37. लोक में द्रव्य छ: हैं फिर जीव के साथ पुद्गल ही आबद्ध क्यों होता है ? उ. लोक में छः द्रव्य हैं— धर्म, अधर्म, आकाश, काल, पुद्गल और जीव । धर्म, अधर्म और आकाश समूचे लोक में व्याप्त होने से वे जीव में भी व्याप्त हैं पर उनका जीव के साथ वैसा संयोग नहीं जैसा पुद्गल का है। धर्म आदि सम्बन्ध स्पर्श रूप है, जबकि पुद्गल का सम्बन्ध बंधन रूप । इस तरह जीव और पुद्गल दो ही पदार्थ ऐसे हैं जो परस्पर आबद्ध हो सकते हैं । पुद्गल के अतिरिक्त अन्य कोई पदार्थ नहीं, जो जीव के साथ आबद्ध हो सके। 38. आत्मा के साथ चिपकने वाले कर्म पुद्गलों को कितने भागों में विभक्त किया गया है ? उ. आत्मा के साथ चिपकने वाले कर्म पुद्गलों को दो भागों में विभक्त किया गया है—घाति कर्म और अघाति कर्म। 39. घाति कर्म किसे कहते हैं ? उ. आत्मगुणों की घात करने वाले, उनका हनन करने वाले कर्म पुद्गलों को कर्म-दर्शन 19
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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