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________________ * चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र और तारा इन चार ज्योतिष्क विमानों के पृथ्वीकायिक रत्नों के शरीर में तीसरी पर्याप्ति पूर्ण होने के बाद उद्योत नाम कर्म का उदय होता है। * जुगनु जैसे चतुरिन्द्रिय जीव के शरीर में उद्योत नाम कर्म का उदय होता 3 984. किन-किन जीवों में उद्योत नाम कर्म का उदय नहीं होता है? ___* देवों के मूल वैक्रिय शरीर में, नारकी जीवों के मूल वैक्रिय और उत्तर वैक्रिय शरीर में उद्योत नाम कर्म का उदय नहीं होता। * मनुष्यों के (1 से 5 गणस्थानवर्ती) वैक्रिय शरीर में और मल औदारिक शरीर में उद्योत नामकर्म का उदय नहीं होता हैं। * वायुकाय के मूल (औदारिक) शरीर में एवं वैक्रिय शरीर में और तेजसकाय के मूल (औदारिक) शरीर में उद्योत नाम कर्म का उदय नहीं होता है। * मुनि के जन्म से मिले औदारिक शरीर में उद्योत नाम कर्म का उदय नहीं होता। 985. निर्माण नाम कर्म किसे कहते हैं? उ. जिस कर्म के उदय से जीव के अवयव यथास्थान व्यवस्थित होते हैं तथा उसका शरीर फोड़े-फुसियों से रहित होता है उसे निर्माण नाम कर्म कहते है। 986. अंगोपांग का निर्माण अंगोपांग नाम कर्म करता है तो फिर निर्माण नाम कर्म की क्या आवश्यकता है? | उ. मस्तक, हाथ, पांव आदि अंग, उपांग एवं अंगोपांग की रचना अंगोपांग नाम कर्म करता है परन्तु उन्हें व्यवस्थित-यथास्थान पर जमाने का कार्य निर्माण नाम कर्म करता है। अतः दोनों नाम कर्म भिन्न-भिन्न हैं। यह ध्रुवोदयी प्रकृति है। अर्थात् प्रत्येक जीव के इसका उदय अवश्यमेव होता 987. तीर्थंकर नाम कर्म किसे कहते हैं? उ. जिस कर्म के उदय से जीव को तीर्थंकरत्व की प्राप्ति होती है, उसे तीर्थंकर नाम कर्म कहते हैं। 988. तीर्थंकर किसे कहते हैं? उ. साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका रूप चार तीर्थ की स्थापना करते हैं वे तीर्थंकर कहलाते हैं। 4 कर्म-दर्शन 207
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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