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________________ 866. अप्काय किसे कहते हैं? उ. पानी ही जिन जीवों का शरीर है, वे जीव अपकायिक हैं। सब प्रकार का पानी, ओले, कुहरा आदि अपकाय के जीव हैं। इन जीवों के शरीर इतने सूक्ष्म होते हैं कि एक-एक शरीर में हमें दिखाई ही नहीं देता। पानी की एक बूंद अप्कायिक जीवों के असंख्य शरीरों का पिण्ड है। 867. तैजसकाय किसे कहते हैं? उ. जिन जीवों का शरीर अग्नि है, वे जीव तैजसकायिक कहलाते हैं। इस जीव निकाय में अंगारे, ज्वाला, उल्का आदि का समावेश है। पानी की बूंद की भांति अग्नि की एक छोटी-सी चिनगारी में भी अग्नि के असंख्य जीवों के शरीरों का अस्तित्व है। 868. वायुकाय किसे कहते हैं? उ. जिन जीवों का शरीर वायु है, वे जीव वायकायिक कहलाते हैं। संसार में जितने प्रकार की वायु है, वह इसी काय में अन्तर्गर्भित है। इस काय में भी असंख्य जीव हैं, जो पृथक्-पृथक् शरीर में रहते हैं। 869. वनस्पतिकाय किसे कहते हैं? उ. जिन जीवों का शरीर वनस्पति है, वे जीव वनस्पतिकायिक कहलाते हैं। इस काय में रहने वाले जीवों के दो प्रकार हैं—प्रत्येक वनस्पति और साधारण वनस्पति। 870. प्रत्येक वनस्पति से क्या तात्पर्य है? उ. प्रत्येक वनस्पति के जीव एक-एक शरीर में एक-एक जीव ही होते हैं। एक जीव के आश्रित असंख्य जीव रह सकते हैं पर उनकी सत्ता स्वतंत्र है। 871. साधारण वनस्पति किसे कहते हैं? उ. साधारण वनस्पति में एक-एक शरीर में अनन्त जीवों का पिण्ड होता है। सब प्रकार की काई, कंद, मूल आदि साधारण वनस्पति के जीव है। 872. शरीर नामकर्म किसे कहते हैं? उ. जो कर्म शरीर प्राप्ति का हेतुभूत हो, उसे शरीर नाम कर्म कहते हैं। 873. शरीर-नामकर्म की उपप्रकृतियां कितनी हैं? ___ उ. शरीर नामकर्म की पांच उपप्रकृतियां हैं 1. औदारिक, 2. वैक्रिय, 3. आहारक, 4. तैजस और 5. कार्मण। HAR HARIB कर्म-दर्शन 189 कर्म-दर्शन 189
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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