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________________ 861. द्वीन्द्रिय जाति - नामकर्म किसे कहते हैं? उ. जिस कर्म के उदय से जीव द्वीन्द्रिय — स्पर्श और जिह्वा मात्र धारण करने वाली जीव-जाति में जन्म ग्रहण करे, उसे द्वीन्द्रिय जातिनाम - कर्म कहते हैं। कृमि, शंख, अलसिया आदि अनेक प्रकार के जीव इस विभाग में हैं, जो इन दो इन्द्रियों के आधार पर अपना जीवनयापन करते हैं। 862. त्रीन्द्रिय जाति नामकर्म किसे कहते हैं? उ. जिस कर्म के उदय से जीव तीन इन्द्रियां — स्पर्श, जिह्वा और घ्राण मात्र करने वाली जीव जाति में जन्म ग्रहण करे उसे 'त्रीन्द्रिय जाति नामकर्म' कहते हैं। इस विभाग के जीव त्वचा के द्वारा इष्ट, अनिष्ट की पहचान कर सकते हैं, रसना के द्वारा चख सकते हैं और घ्राण - नासिका के द्वारा सूंघ सकते हैं। इस वर्ग में आने वाले जीव हैं-चींटी, जलौका, जूं, लीख, खटमल आदि । 863. चतुरिन्द्रिय जाति - नामकर्म किसे कहते हैं? उ. जिस कर्म के उदय से जीव चार इन्द्रियां - स्पर्श, जिह्वा, घ्राण और चक्षु मात्र ग्रहण करने वाली जीव-जाति में जन्म ग्रहण करे उसे 'चतुरिन्द्रिय जाति नामकर्म' कहते हैं। चतुरिन्द्रिय जीवों में स्पर्शन, रसन और घ्राण चेतना के साथ देखने की क्षमता भी होती है। इनमें केवल सुनने की अर्थात् श्रोतेन्द्रिय शेष रहती है। मक्खी, मच्छर, पतंग, भ्रमर आदि जीव 'चतुरिन्द्रिय' कहलाते हैं। 864. पंचेन्द्रिय जाति नामकर्म किसे कहते हैं? उ. जिस कर्म के उदय से जीव पांच इन्द्रियां — स्पर्श, जिह्वा, घ्राण, चक्षु, श्रोत्र वाली जीव जाति में जन्म ग्रहण करे उसे 'पंचेन्द्रिय जाति नामकर्म' कहते हैं। पंचेन्द्रिय जीवों की ऐन्द्रियिक क्षमता पूर्णरूप से विकसित हो जाती है। ये जीव अन्य सब जीवों में उत्कृष्ट हैं। इस विभाग में पशु, पक्षी, नारक, देव और मनुष्य – इन सब प्राणियों का समावेश हो जाता है । 865. पृथ्वीकाय किसे कहते हैं ? उ. काय का अर्थ है— शरीर । पृथ्वी है जिन जीवों का शरीर, वे सब पृथ्वीकायिक कहलाते हैं। इस वर्ग में मिट्टी, मुरड़, हीरा, पन्ना, कोयला, सोना, चांदी आदि अनेक प्रकार के जीव आते हैं। मिट्टी की एक छोटी सी डली में असंख्य जीव होते हैं। ये जीव एक साथ रहने पर भी अपनी-अपनी स्वतंत्र सत्ता बनाये रखते हैं। 188 कर्म-दर्शन
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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