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________________ 810. एक कर्म की वर्गणा अधिकतम कितने भव तक भोगी जा सकती है? उ. आठ कर्मों में एक आयुष्य कर्म की वर्गणा मात्र एक भव में भोगी जाती है, शेष सात कर्मों की वर्गणा एक भव या अनेक भवों तक भोगी जा सकती है। कर्म बंध में काल का निर्धारण होता है। उस काल में वह कितने भव करता है, इसकी निश्चित संख्या नहीं होती। पर उस काल में जितने भव करता है, उतने भव तक उस कर्म वर्गणा को भोगता है। कर्म बंध का अधिकतम काल सत्तर करोड़ाकरोड़ सागरोपम है। उसके भोगने में असंख्य भव लग सकते हैं। 811. भावकरण किसे कहते हैं? उ. पूर्वोक्त चार करण के रूप में जो कर्मों का बंध होता है, उसके उदय को भावकरण कहते हैं। 812. जीव अल्पायुष्य कर्म का बंध कितने कारणों से करता है? उ. जीव अल्पायुष्य कर्म का बंध तीन कारणों से करता है 1. जीव हिंसा से 2. मृषावाद से 3. श्रमण माहन को अप्रासुक और __ अनेषणीय अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य का दान करने से। 813. जीव के दीर्घायुष्य कर्म का बंध कितने कारणों से होता है? ___ उ. जीव दीर्घायुष्य कर्म का बंध तीन कारणों से करता है___ 1. जीव हिंसा न करने से। 2. मृषावाद न बोलने से। 3. श्रमण माहन को प्रासुक और एषणीय अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य का दान करने से। 814. दीर्घायुष्यकर्म कितने प्रकार का होता है? उ. दो प्रकार का-शुभ और अशुभ। 815. देवताओं का आयुष्य शुभ है या अशुभ? उ. शुभ। 816. जीव के अशुभ दीर्घायुष्य कर्म का बंधन कितने कारणों से होता है? उ. तीन कारणों से जीव अशुभ दीर्घायुष्य कर्म का बंधन करते हैं 1. जीव हिंसा से 2. मृषावाद से 3. श्रमण माहन की अवलेहना, निंदा, अवज्ञा, गर्हा और अपमान कर किसी अमनोज्ञ तथा प्रीतिकर, अशन, पान, खाद्य व स्वादिम का दान करने से। 817. अशुभ दीर्घ आयुष्य का बंध कौनसी गति में होता है? उ. चारों गतियों में। 176 कर्म-दर्शन
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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