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________________ 803. आयुष्य कर्म किन-किन का शुभ माना गया है? उ. यौगलिक मनुष्य, यौगलिक तिर्यंच, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव इनके आयुष्य एवं गोत्र कर्म को शुभ माना गया है। तीर्थंकर के नाम कर्म, गोत्र कर्म एवं आयुष्य कर्म तीनों एकान्त शुभ होते हैं। देवता एवं चरमशरीरी मनुष्यों का आयुष्य शुभ एवं बाकी तीन अघात्य कर्म शुभ-अशुभ दोनों होते हैं। 804. आयुष्य कर्म बंध में काम आने वाले करण कौनसे हैं? उ. जीव अगले जन्म के आयुष्य बंध की जो प्रवृत्ति करता है, उसे करण कहते हैं। उसके मूल पांच प्रकार हैं 1. द्रव्यकरण, 2. क्षेत्रकरण, 3. कालकरण, 4. भवकरण, 5. भावकरण। 805. द्रव्यकरण किसे कहते हैं? __ उ. कर्म वर्गणाओं को आकर्षित कर आत्मसात् करना तथा उन्हें कार्मण शरीर के रूप में परिणत करना, द्रव्यकरण है। 806. क्षेत्रकरण किसे कहते हैं? __उ. जिस क्षेत्र से जीव कर्मवर्गणा को ग्रहण कर कार्मण शरीर के रूप में परिणत करता है उसे क्षेत्रकरण कहते हैं। यह अपने संलग्न कर्म पुद्गलों को ही ग्रहण करता है। गृहीत कर्मवर्गणा कितने क्षेत्र को अवगाहित करती है तथा किस क्षेत्र विशेष में उदय में आएगी, इस निर्धारण को भी क्षेत्रकरण कहते 807. संलग्न आकाश प्रदेश स्थित पुद्गलों से अधिक पुद्गल वर्गणा को ग्रहण करना हो तो वहाँ क्या होगा? उ. संलग्न आकाश प्रदेश का तात्पर्य मात्र एक आकाश प्रदेश नहीं, उसके पार्श्ववर्ती आकाश प्रदेश भी एक-दूसरे से संलग्न हैं, वहाँ के पुद्गल ग्रहण कर लेते हैं। मध्यवर्ती आकाश प्रदेश छोड़कर उससे आगे के आकाश प्रदेशों पर स्थित पुद्गल वर्गणा को ग्रहण नहीं कर सकते। 808. कालकरण किसे कहते हैं? ___ उ. कर्म पुद्गलों को ग्रहण करने में जितना समय लगता है तथा वे पुद्गल जितने समय तक आत्मा के साथ जुड़े रहेंगे, उसे कालकरण कहते हैं। 809. भवकरण किसे कहते हैं? उ. गृहित कर्मवर्गणा जिस भव में भोगी जाती है, उसे भवकरण कहते हैं। 15 कर्म-दर्शन 175
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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