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________________ 792. आयुष्य कर्म कितने प्रकार से बंधता है ? उ. दो प्रकार से – सोपक्रमी अथवा अपवर्तनीय आयुष्य । निरूपक्रमी अथवा अनपवर्तनीय आयुष्य । 793. सोपक्रमी आयुष्य किसे कहते हैं? उ. जिस आयुष्य कर्म के उपक्रम - उपघात लगती है वह सोपक्रमी आयुष्य होता है। 794. निरुपक्रमी आयुष्य किसे कहते हैं? उ. जिस आयुष्य कर्म के कोई उपक्रम - उपघात नहीं लगता, वह निरुपक्रमी आयुष्य है। कोई जीव जितने वर्ष का आयुष्य लेकर आता है, उसमें एक समय का भी अन्तर नहीं पड़ता, वह निरुपक्रमी आयुष्य है। 795. आयुष्य क्षीण होने के (उपक्रम - उपघात लगने के) कितने कारण हैं? उ. आयुष्य क्षीण होने के सात कारण हैं— 1. अध्यवसान — राग-द्वेष, भय आदि की प्रक्रिया - सोमिल ब्राह्मण' 2. निमित्त — शस्त्र प्रयोग । 3. आहार - आहार आदि की न्यूनाधिकता - ब्राह्मण का अति आहार | 2 4. वेदना — नयनादि की तीव्रतम वेदना । 5. पराघात —– गड्ढ़े आदि में गिरना । 6. स्पर्श — सांप, बिच्छू आदि का स्पर्श - ब्रह्मदत्त चक्री का स्त्रीरत्न 7. आन—अपान-उच्छ्वास, निःश्वास का निरोध । 796. अकाल मृत्यु किसकी होती है ? उ. सोपक्रमी आयुष्य वाले की अकाल मृत्यु हो सकती है। सौ वर्ष भोगे जाने वाले आयुष्य को उपघात लगने पर अन्तर्मुहूर्त में भोगा जा सकता है। 797. सोपक्रमी और निरुपक्रमी आयुष्य किन-किन जीवों के होता है ? उ. नैरयिक, देव, असंख्येय वर्षजीवी तिर्यंच और मनुष्य, उत्तम पुरुष (तिरेसठ शलाका पुरुष) तथा चरमशरीरी - इन सबका आयुष्य निरुपक्रम होता है। इनके अतिरिक्त शेष सब जीवों का आयुष्य सोपक्रम और निरुपक्रम दोनों प्रकार का हो सकता है। 1. आव. चूर्णि 1 पृ. 255-266 2. आव. चूर्णि 1 पृ. 255-266 3. आव. चूर्णि 1 पृ. 255-266 कर्म-दर्शन 173
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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