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________________ 785. मनुष्य आयुष्य बंध के कितने हेतु हैं? उ. मनुष्य आयुष्य बंध के चार हेत् हैं1. सरल प्रकृति होना 2. प्रकृति विनीत होना 3. दया के भाव रखना (मेघ कुमार) 4. ईर्ष्या न करना। 786. देव आयुष्य बंध के कितने हेतु हैं? उ. देव आयुष्य बंध के चार हेतु हैं1. सरागसंयम 2. संयमासंयम (श्रावकपन पालना)' 3. बाल-तप मिथ्यात्वी का तप 4. अकाम निर्जरा-इच्छा के बिना किया जानेवाला तप। 787. असुर देवायुष्य बंधने के मुख्य कारण क्या हैं? उ. असुर देवायुष्य बंधने के चार कारण हैं 1. अज्ञान तप में प्रतिबद्धता 2. प्रबल क्रोध करना 3. तप का अहंकार करना 4. वैर प्रतिबद्धता 788. नरकायष्य कर्म किसे कहते हैं? उ. जिस कर्म के उदय से जीव निश्चित अवधि की पूर्णता से पूर्व नरक भव से मुक्त होकर अन्य भव में नहीं जा सकता है उसे नरकायुष्य कर्म कहते हैं। 789. तिर्यंचायुष्य कर्म किसे कहते हैं? उ. जिस कर्म के उदय से जीव निश्चित अवधि की पूर्णता से पूर्व तिर्यंच भव से मुक्त होकर अन्य भव में नहीं जा सकता है उसे तिर्यंचायुष्य कर्म कहते हैं। 790. मनुष्यायुष्य कर्म किसे कहते हैं? उ. जिस कर्म के उदय से जीव निश्चित अवधि की पूर्णता से पूर्व मनुष्य भव से मुक्त होकर अन्य भव में नहीं जा सकता है उसे मनुष्यायुष्य कर्म कहते हैं। 791. देवायुष्य कर्म किसे कहते हैं? उ. जिस कर्म के उदय से जीव निश्चित अवधि की पूर्णता से पूर्व देवभव से मुक्त होकर अन्य भव में नहीं जा सकता है उसे देवायुष्य कर्म कहते हैं। 1. कथा सं. 33 2. कथा सं. 34 172 कर्म-दर्शन
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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