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________________ 735. क्रोधादि किसका नाश करते हैं? उ. क्रोध-प्रीति का नाश करता है, मान-विनय का, माया-मैत्री का, लोभ-सब का विनाश करता है। 736. चारों कषायों पर विजय पाने के उपाय क्या हैं? उ. उपशम से क्रोध पर, मृदुता से मान पर, ऋजुता से माया पर और सन्तोष से लोभ पर विजय प्राप्त की जा सकती है। 737. कषाय प्रत्याख्यान से जीव क्या प्राप्त करता है? उ. कषाय प्रत्याख्यान से जीव वीतराग भाव को प्राप्त करता है। वीतराग भाव को प्राप्त हुआ जीव सुख-दुःख में सम हो जाता है। क्रोध-मान-माया-लोभ विजय से जीव क्रमशः क्षमा, मृदुता, ऋजुता और संतोष को उत्पन्न करता है। वह क्रोध-मान-माया-लोभ वेदनीय कर्म का बंध नहीं करता और पूर्वबद्ध तत्निमित्तक कर्म को क्षीण करता है। 738. जिस श्रमण का कषाय प्रबल होता है उसका श्रामण्य कैसा होता है? उ. जिस श्रमण का कषाय प्रबल होता है उसका श्रामण्य इक्षु पुष्प की भांति निष्फल होता है। 739. नो-कषाय चारित्र मोहनीय कर्म किसे कहते हैं? । उ. * नो-कषाय मोहनीय, 'नो' शब्द के कई अर्थ होते हैं—निषेध, आंशिक निषेध, साहचर्य आदि। प्रस्तुत प्रसंग में इसका अर्थ साहचर्य है। इन सोलह कषायों के साहचर्य से जो कर्म उदय में आते हैं, उन्हें नो-कषाय कहा जाता है। * जो कषाय के सहवर्ती हैं, मूलभूत कषायों को उत्तेजित करते हैं, हास्य आदि के रूप में जिनका वेदन होता है-कषाय-मोहनीय के क्षय होने से पहले क्षय हो जाते हैं वे नो-कषाय हैं। 740. नो कषाय के नौ प्रकार कौनसे हैं? उ. (1) हास्य, (2) रति, (3) अरति, (4) भय, (5) शोक, (6) जुगुप्सा, __ (7) स्त्रीवेद, (8) पुरुषवेद, (9) नपुंसकवेद। 741. हास्य मोहनीय कर्म किसे कहते हैं? उ. जिस कर्म के उदय से सनिमित्त या अनिमित्त हास्य की प्रवृत्ति होती है, वह हास्य मोहनीय कर्म है। 100 कर्म-दर्शन 161
SR No.032424
Book TitleKarm Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanchan Kumari
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2014
Total Pages298
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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